सुकरात


सुकरात (469-399 ई. पू.) यूनान का विख्यात दार्शनिक। सुकरात को सूफियों की भांति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। वस्तुतः उसके समसामयिक भी उसे सूफी समझते थे। सूफियों की भांति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, सच्चाज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुंच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।

बुद्ध की भांति सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं, किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुकरात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपरवाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह एथेंस के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुकरात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद।

तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उस पर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था।

ओशो कहते हैं: सुकरात को जहर दे कर मारा गया। अदालत ने सुकरात से कहा कि अगर तुम एक वचन दे दो कि तुम सत्य का प्रचार नहीं करोगे-जिसको तुम सत्य कहते हो, उसका प्रचार नहीं करोगे, चुप रहोगे-तो यह मृत्यु बचाई जा सकती है। हम तुम्हे माफ कर दे सकते हैं।

सुकरात ने कहा, जीवन को तो मैं देख चुका। सब कोनों से पहचान लिया। पर्त-पर्त उघाड़ ली। और अगर मुझे जीने का मौका दिया जाए, तो मैं एक काम के लिए जीना चाहूंगा कि दूसरे लोगों को भी जीवन का सत्य पता चल जाए। और तो अब कोई कारण न रहा। मेरी तरफ से जीवन का काम पूरा हो गया। पकना था, पक चुका। मेरी तरफ से तो मृत्यु में जाने में कोई अड़चन नहीं है। वस्तुतः मैं तो जाना चाहूंगा। क्योंकि जीवन देख लिया, मृत्यु अभी अनदेखी पड़ी है। जीवन तो पहचान लिया, मृत्यु से अभी पहचान नहीं हुई। जीवन तो ज्ञात हो गया, मृत्यु अभी अज्ञात है, रहस्यमय है। उस मंदिर के द्वार भी खोल लेना चाहता हूं। मेरे लिए तो मैं मरना ही चाहूंगा, जानना चाहूंगा-मृत्यु क्या है? यह प्रश्न और हल हो जाए। जीवन क्या है, हल हो चुका। एक द्वार बंद रह गया है; उसे भी खोल लेना चाहता हूं। और अगर मुझे छोड़ दिया जाए जीवित, तो मैं एक ही काम कर सकता हूं-और एक ही काम के लिए जीना चाहूंगा-और वह सत्य यह कि जो मैंने देखा है वह दूसरों को दिखाई पड़ जाए। अगर इस शर्त पर आप कहते हैं की सत्य बोलना बंद कर दूं तो जीवित रह सकता हूं, तो फिर मुझे मृत्यु स्वीकार है।

मृत्यु सुकरात ने स्वीकार कर ली। जब उसे जहर दिया गया, वह जहर पीकर लेट गया। मित्र रोने लगे शिष्य दहाड़ने लगे पीड़ा में; आंसुओं की धारें बह गई। सुकरात ने आंख खोलीं और कहा की यह वक्त रोने का नहीं। मैं चला जाऊं, फिर रो लेना। फिर बहुत समय पड़ा है। ये क्षण बड़े कीमती हैं। कुछ रहस्य की बातें तुम्हें और बता जाऊं। जीवन के संबंध में तुम्हें बहुत बताया, अब मैं मृत्यु में गुजर रहा हूं, धीरे धीरे प्रवेश हो रहा है। सुनो!

मेरे पैर ठन्डे हो गए हैं; पैर मर चुके हैं। जहर का प्रभाव हो गया। मेरी जांघ शून्य होती जा रही है। अब मैं पैरों का कोई अनुभव नहीं कर सकता, हिलाना चाहूं तो हिला नहीं सकता। वहां से जीवन विदा हो गया। लेकिन आश्चर्य! मेरे भीतर जीवन में जरा भी कमी नहीं पड़ी है। मैं उतना ही जीवित हूं। जांघें सो गई, शून्य हो गई।

सुकरात ने अपने शिष्य को कहा, क्रेटो, तू जरा चिउंटी लेकर देख मेरे पैर पर।

उसने चिउंटी ली।

सुकरात ने कहा, मुझे पता नहीं चलता। पैर मुर्दा हो गए। आधा शरीर मर गया। लेकिन मैं तो भीतर अभी भी पूरा का पूरा अनुभव कर रहा हूं! हाथ ढीले पड़ गए। हाथ उठते नहीं। गर्दन लटक गई। आखिरी क्षण में भी, आंख जब बंद होने लगी, तब भी उसने कहा कि मैं तुम्हें एक बात कहे जाता हूं, याद रखना: करीब-करीब सब मर चुका है, आखिरी किनारा रह गया है हाथ में, लेकिन मैं पूरा का पूरा जिंदा हूं, मृत्यु मुझे छू नहीं पाई है।

जिसने जीवन को जान लिया, वह मृत्यु को जानने को उत्सुक होगा। क्योंकि मृत्यु जीवन का दूसरा पहलू है; छिपा हुआ हिस्सा है। चांद की दूसरी बाजू है, जो कभी दिखाई नहीं पड़ती।
-ओशो
सब सयाने एक मत
प्रवचन-4 से संकलित
पूरा प्रवचन एम. पी. थ्री. एवम पुस्तक में उपलब्ध है