आदर्श




हमें खयाल ही नहीं है, व्यक्ति आदर्श से नहीं बनता, व्यक्ति बनता से बीज से, पोटेंशिएलिटी से। व्यक्ति भविष्य से नहीं बनता, जो उसके भीतर छिपा है उसके प्रगटन से, उसकी अभिव्यक्ति से बनता है। एक बीज हम बो देते हैं फूल का; वृक्ष बड़ा होता है किसी आदर्श के कारण? वृक्ष मैं फूल आते हैं किसी आदर्श के कारण? नहीं, वृक्ष के बीज में जो छिपा है उसके एक्सप्रेशन, उसकी अभिव्यक्ति के कारण वृक्ष में पत्ते आते हैं, फूल आते हैं, फल आते हैं। जो छिपा है वह पूरी तरह प्रकट हो सके, तो वृक्ष में फूल आ जाते हैं। आदमी के साथ हम उलटा काम कर रहे हैं हजारों साल से। हम आगे उस पर कुछ थोपते हैं कि तुम यह बनो। हम यह फिकर नहीं करते कि तुम्हारे भीतर क्या छिपा है वह तुम प्रकट हो जाओ। जीवन का विकास प्रकटीकरण है, मेनिफेस्टेशन है। जीवन का विकास आरोपण नहीं है, कल्टीवेशन नहीं है। जीवन को ऊपर से नहीं थोपना पड़ता, भीतर से विकसित करना होता है। हम एक आदमी को कहते हैं, महावीर जैसे बन जाओ। हम महावीर को इस आदमी के ऊपर थोपने की कोशिश करते हैं बिना यह जाने कि इस आदमी का बीज क्या है, इस आदमी की पोटेंशिएलिटी क्या है, इसके भीतर क्या छिपा है। यह गुलाब का फूल बनने को है, चमेली का, जुही का, क्या? इसको बिना जाने हम इसके ऊपर किसी को थोपने की कोशिश करते हैं। स्वभावतः परिणाम यह होता है कि जो इसके भीतर छिपा है वह कुंठित हो जाता है, वह वहीं ठहर जाता है, स्टेग्नेंट हो जाता है, जड़ हो जाता है। फिर इसके प्राण तड़फड़ाते हैं, क्योंकि जो भीतर छिपा है अगर प्रकट न हो सके, तो जीवन दुख, चिंता, एंज़ायटी, फ्रस्ट्रेशन से भर जाता है। जीवन की एक ही खुशी है, एक ही आनंद, एक ही मुक्ति कि जो मेरे भीतर छिपा है वह पूरी तरह प्रकट हो जाए, पूरी फ्लावरिंग हो जाए, उसका पूरा फूल विकसित हो जाए। लेकिन हमने अब तक जो किया है वह उलटा है। भीतर जो छिपा है उसे प्रकट करने की कोशिश नहीं, बाहर जो दिखाई पड़ता है उसे थोपने की चेष्टा, ये दोनों उलटी बातें हैं। अगर मैं किसी बगिया में चला जाऊं और वहां जाकर गुलाब के फूल को कहूं, तू कमल का फूल हो जा। चमेली को कहूं, तू चंपा हो जा। पहली तो बात, फूल मेरी बात सुनेंगे नहीं। फूल आदमियों जैसे नासमझ नहीं होते कि हर किसी की बात सुनने को इकट्ठे हो जाएं। सुनेंगे ही नहीं। मैं चिल्लाता रहूंगा, फूल अपनी मौज में, हवाओं में तैरते रहेंगे। फिकर भी नहीं करेंगे कि कोई समझाने आया हुआ है। लेकिन हो सकता है आदमी के साथ-साथ रहते-रहते कुछ फूल बिगड़ गए हों। सोहबत का बुरा असर पड़ता ही है। हो सकता है कुछ फूल उपदेश सुनने के प्रेमी हो गए हों और मेरी बात सुन लें, तो उस बगिया में बड़ा उत्पात मच जाएगा। फिर उस बगिया में एक बात तय है, फूल पैदा ही नहीं होंगे। क्योंकि गुलाब कोशिश करेगा कमल होने की। चमेली कोशिश करेगी चंपा होने की। गुलाब के भीतर कमल होने की कोई संभावना ही नहीं है। कमल होने की कोशिश में कमल तो हो ही नहीं सकेगा, यह असंभव है। लेकिन दूसरी दुर्घटना घट जाएगी, कमल होने की कोशिश में वह गुलाब भी नहीं हो पाएगा। क्योंकि सारी कोशिश कमल होने में लग जाएगी, तो गुलाब होने के लिए शक्ति कहां बचेगी, दृष्टि कहां बचेगी, समय कहां बचेगा, सुविधा कहां बचेगी, खयाल भी नहीं बेचेगा कि मुझे गुलाब होना है, मुझे तो कमल होना है। यह रोग उसके ऊपर चढ़ गया तो वह गुलाब नहीं हो सकता। उस बगिया में फूल पैदा होने बंद हो जाएंगे। आदमी की बगिया में फूल पैदा होना हजारों साल से बंद है। कभी एकाध फूल पैदा हो जाता है। अगर कोई माली साढ़े तीन लाख पौधे लगाए, साढ़े तीन अरब पौधे लगाए और एक पौधे में फूल पैदा हो जाए, उस माली को हम धन्यवाद देंगे? शायद हम यही समझेंगे कि यह फूल माली से बच कर शायद विकसित हो गया। क्योंकि साढ़े तीन अरब पौधों में तो कोई फूल नहीं लगा। एकाध महावीर कभी पैदा हो जाता, एकाध बुद्ध, एकाध क्राइस्ट, इससे कोई आदमी का गौरव है? इससे आदमी का कोई गौरव नहीं। अरबों आदमी बिना फूलों के समाप्त हो जाते हैं। क्या शेष सारे लोग पूजा करने को पैदा हुए हैं कि एक फूल पैदा हो जाए शेष उसकी पूजा करें? मंदिर बनाएं? जयजयकार करें? नहीं साहब, नहीं, हर आदमी अपने भीतर फूलों को विकसित करने को पैदा हुआ है किसी की पूजा करने को नहीं। 

 अंतर की खोज 

 ओशो