हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्-(प्रवचन-02)

सुना है मैंने, एक खतरनाक तूफान में कोई नाव उलट गई थी। एक व्यक्ति उस नाव में बच गया और एक निर्जन द्वीप पर जा लगा। दिन, दो दिन, चार दिन, सप्ताह, दो सप्ताह उसने प्रतीक्षा की कि जिस बड़ी दुनिया का वह निवासी था वहां से कोई उसे बचाने आ जाएगा। फिर महीने भी बीत गए और वर्ष भी बीतने लगा। फिर किसी को आते न देख कर वह धीरे-धीरे प्रतीक्षा करना भी भूल गया।

पांच वर्षों के बाद कोई जहाज वहां से गुजरा। उस एकांत निर्जन द्वीप पर उस आदमी को निकालने के लिए जहाज ने लोगों को उतारा। और जब उन लोगों ने उस खो गए आदमी को वापस चलने को कहा, तो वह विचार में पड़ गया। उन लोगों ने कहा, क्या विचार कर रहे हैं! चलना है या नहीं? तो उस आदमी ने कहा, अगर तुएहारे साथ जहाज पर कुछ अखबार हों, जो तुएहारी दुनिया की खबर लाए हों, तो मैं पिछले दिनों के कुछ अखबार देख लेना चाहता हूं।