मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-08

झेन का शास्त्र है कोरी किताब-प्रवचन-आठवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा: -
झेन सदगुरू मूनान का एक ही उत्तराधिकारी था, उसका नाम था-शोजू
जब शोजू झेन का प्रशिक्षण और अध्ययन पूरा कर चुका, मू-नान ने
उसे अपने कक्ष में बुलाकर कहा- '' मैं अब बूढ़ा हुआ और जहां तक
मैं जानता हूं, तुम्हीं अकेले ऐसे हो जो इस प्रशिक्षण को विकसित कर
आगे ले जाओगे। यहां मेरे पास एक पवित्र ग्रंथ है- जो सात पीढ़ियों
से एक सद्‌गुरु से दूसरे सदगुरु को सौपा गया है, मैंने भी अपनी समझ
के अनुसार-उसमें कुछ जोड़ा है यह ग्रंथ बहुत कीमती है और मैं इसे
तुम्हें सौंप रहा जिससे मेरा उत्तराधिकारी बन कर तुम मेरा प्रतिनिधित्व
शोजू? ने उत्तर- '' कृपया अपनी यह किताब अपने पास रखिए मैंने
तो आपसे अनलिखा झेन पाया है और मैं उसे ही पाकर आंनदिन हूं,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।''
मूनान ने उत्तरदिया- ''मैं इसे जानता हूं, लेकिन यह एक महान कार्य
का पवित्र दस्तावेज है? जो एक सदगुरू से दूसरे सदगुरू तक सात
पीढ़ियों से हस्ततिरित होता रहा है और यह तुम्हारे भी प्रशिक्षण का
एक प्रतीक बनेगा यह रहा वह पवित्र ग्रंथ।''
दोनों जलती आग के सामने बैठे बातचीत कर रहे थे और जिस क्षण
शोजू ने अनुभव किया कि किताब उसके हाथों में है? उसने उसे आग
की लपटों में झांक दिया
मूनान जो अपने जीवन में कभी क्रोधित हुआ ही नहीं था।
चिल्लाकर बोला- '' यह तुम क्या कर रहे हो?''
और शोजू ने भी प्रत्युत्तर में चीखते हुए कह?- ''और आप कह क्या हो?'

सभी ग्रंथ और सभी किताबें मृत हैं और उन्हें होना भी चाहिए क्योंकि वे जीवन्त सारे शास्त्र कब्रिस्तान जैसे हैं, इसके सिवाय वे और कुछ हो भी नहीं सकते। जिस क्षण किसी शब्द का उच्चारण किया जाता है, वैसे ही वह गलत हो जाता है। वह अनुच्चरित है, वहां तक ठीक है। जैसे ही उसका उच्चारण किया, उच्चारण करते ही वह नकली हो गया। सत्य कहा ही नहीं जा सकता, उसे लिखा भी नहीं जा सकता और न किसी तरीके से उस ओर इशारा किया जा सकता है। यदि वह कहा जा