तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-04

तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(सरहा के गीत)-भाग-पहला
चौथा-प्रवचन-(प्रेम एक मृत्यु है)
(दिनांक 24 अप्रैल 1977 ओशो आश्रम पूना।)

पहला प्रश्न: ओशो, आप में वह सब-कुछ हैं जो मैंने चाहा था, या जो मैंने कभी चाही या मैं कभी चाह सकती थी। फिर मुझ में आपके प्रति इतना प्रतिरोध क्यों है?

शायद इसी कारण--यदि तुममें मेरे प्रति गहन प्रेम है तो गहन प्रतिरोध भी होगा। वे एक-दूसरे को संतुलित करते हैं। जहां कहीं पर प्रेम है, वहां प्रतिरोध तो होगा ही। जहां कहीं भी तुम बहुत अधिक आकर्षित होते हो, तुम उस स्थान से, उस जगह से भाग जाना भी चाहोगे--क्योंकि अत्यधिक आकर्षित होने का अर्थ है कि तुम अतल गहराई में गिरोगे, जो तुम स्वयं हो वह फिर न रह सकोगे।
प्रेम खतरनाक है। प्रेम एक मृत्यु है। यह स्वयं मृत्यु से भी बड़ा घातक है, क्योंकि मृत्यु के बाद तो तुम बचते हो लेकिन प्रेम के बाद तुम नहीं बचते। हां, कोई होता है परंतु वह दूसरा ही होता है, आपमें कुछ नया पैदा होता है। परंतु तुम तो चले गए इसलिए भय है।
जो मेरे प्रेम में नही है, वे बहुत समीप आ सकते हैं और फिर भी वहां भय न होगा। जो मेरे प्रेम में है, वे हर कदम उठाने में भयभीत होंगे, झिझकते हुए वे ये कदम उठाएंगे। उनके लिए यह बहुत कठिन होगा--क्योंकि जितने वे मेरे समीप आते जाएंगे, उनका अहंकार उतना ही कम होता जाएगा। यही मेरा मृत्यु से तात्पर्य है। जिस क्षण वे सच में मेरे समीप आ गए होते है, वे नहीं रहते, ठीक वैसे ही जैसे कि मैं नहीं रहा।
मेरे समीप आना एक शून्य की अवस्था के समीप आना है। अतः साधारण प्रेम तक में प्रतिरोध होता है--यह प्रेम तो आसाधारण है, यह प्रेम तो अद्वितीय है।
यह प्रश्न आनंद अनुपम का है। मैं देखता रहा हूं। वह लगातर प्रतिरोध कर रही है। यह प्रश्न बौद्धिक मात्र नहीं है, यह अस्तित्वगत है। वह बड़ी लड़ाई लड़ रही है...सब बेकार है, वह तुम जीत तो सकती ही नहीं। तुम भाग्य शाली हो कि तुम नहीं जीत सकती। तुम्हारी हार निश्चित है, इसे एकदम सुनिश्ति ही समझो। मेने उस प्रेम को उसकी आंखों में देखा है, वह इतना शक्तिशाली है कि वह समस्त प्रतिरोध को समाप्त कर देगा, वह अहंकार के बचे रहने में सारे प्रयत्नों के ऊपर विजय पा लेगा।
जब प्रेम शक्तिशाली होता है, अहंकार चेष्टा कर सकता है। पर अहंकार के लिए यह एक पहले से ही हारता हुआ युद्ध होता है। यही कारण है कि इतने सारे लोग बिना प्रेम के जीते हैं। वे प्रेम की बातचीत तो करते है, परंतु प्रेम को जीते नहीं। वे प्रेम की कल्पना तो बहुत सुंदर करते है, पर उसे यथार्थ कभी नहीं करते--क्योंकि प्रेम को यथार्थ करने का अर्थ है कि तुम्हें अपने को पूरी तरह से नष्ट करना होगा।
जब तुम गुरु के पास आते हो, तब या तो पूर्ण विनाश होता है, या कुछ भी नहीं होता। या तो तुम्हें मुझ में विलीन होना होगा और मुझे तुममें विलीन होने देना होगा या तुम यहां हो सकते हो और कुछ भी न होगा। यदि अहंकार बना रहता है तो यह मेरे और तुम्हारे बीच में एक चीन की दीवार बन जाती है। और चीन की दीवाल को तो आसानी से तोड़ा भी नहीं जा सकता, परंतु अहंकार तो एक और भी अधिक सूक्ष्म ऊर्जा है।
लेकिन एक बार प्रेम जन्म जाए, तब अहंकार नपुसंक हो जाता है। और मैंने यह प्रेम अनुपम की आंखों में देखा है। ये ‘वहां’ है! एक बड़ा सघर्ष होने जा रहा है, पर अच्छा है! क्योंकि जो बहुत सरलता से आ जाते हैं, वे आते ही नहीं। जो बड़ा समय लेते है, जो इंच-इंच लड़ते है, सतत संघर्ष करते है केवल वे ही आते है।