तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-03

यह स्वार्गिक अमृत क्या है? यह उस मधु के ही सादृश्य है जो पहले ही से तुम्हारे मुख में है--और तुमने इसका स्वाद तक नही लिया है। तुम्हें स्वाद लेने का समय ही नहीं है। संसार इतना अधिक है और तुम एक स्थान से दूसरे स्थान तक दौड़ते रहते हो। तुम्हें उस मधु का स्वाद लेने की, जो पहले से ही ही मौजूद है, फुर्सत नही है।
यही वह स्वार्गिक अमृत है--यदि तुम इसे चख लो, तुम स्वर्ग में होते हो। यदि तुम इसका स्वाद ले लो, तब कोई मृत्यु नहीं है--यही कारण है कि यह स्वार्गिक अमृत कहलाता है: तुम अमृर्त्य हो जाते हो। तुम अमृर्त्य हो। तुमने यह देखा नहीं है पर तुम अमृर्त्य हो। कोई मृत्यु नहीं है: तुम मृत्यु-हीन हो। आकाश मृत्यु-हीन है। केवल बादल जन्मते और मरते है। नदियां जन्मती और मरती हैं, समुंद्र मृत्यु हीन है। ऐसे ही तुम भी हो।
सरहा ये सूत्र सम्राट से कह रहा है। सरहा उसे तार्किक ढंग से सुनिश्चित नहीं करा रहा है। सच में तो वह अपने अस्तित्व में सम्राट के लिए उपलब्ध करा रहा है। और वह उसे नया परिप्रेक्ष्य दे रहा है--सरहा की और देखने का। तंत्र जीवन की और देखने का एक नया परिप्रेक्ष्य है। और मुझे अभी तक कोई ऐसी चीज नहीं मिली जो तंत्र से गहन हो।