हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्-(प्रवचन-05)

हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्
पांचवां प्रवचन-(ध्यान और रेचन)

प्रश्नः कई लोगों के मन में ऐसा ख्याल है कि तीन दिनों के शिविर से क्या हो सकता है। इंसान के जीवन में इतनी आसानी से कैथार्सिस वगैरह हो जाती है और इसकी कोई आवश्यकता वगैरह है कि ध्यान खुद ही अपने आप ही आ सकता है? इसके बारे में कृपया बताएं।

ध्यान आ सकता है, स्वयं से भी आ सकता है, लेकिन पृथक्करण से नहीं आएगा। बड़ा सवाल यह नहीं है कि हम अपने मन को एनालाइज कर दें, क्योंकि यह पृथक्करण विश्लेषण करते वक्त कहीं हमारा मन ही तो नहीं है। और यह सारा पृथक्करण हमारे ही मन को दो खंडों में तोड़ देता है। तो न तो पृथक्करण से संभव है कि मन एक हो जाए, न ही चिंतन-मनन से संभव है कि एक हो जाए। क्योंकि ये सारी क्रियाएं जिस मन से चलने वाली हैं, उसी मन को बदलना है।