मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-09

.........ध्यान कोई गहन विचार नहीं, वह एक कृत्य है-एक ऐसा कृत्य जो पूरे अस्तित्व से आए। पश्चिम में विशेष रूप से ईसाइयत ने एक झूठी छाप उत्पन्न की है कि ध्यान एक गहन विचार की भांति ही है, जो वास्तव में है नहीं। ईसाइयत के कारण ही पश्चिम बहुत सी चीजों से चूक गया है और उनमें से एक चीज है ध्यान! जो मनुष्य के अस्तित्व की एक दुर्लभ खिलावट है, लेकिन उन लोगों ने उसे गहन विचार-चिंतन के समतुल्य बना दिया है। गहन-चिंतन भी सोच-विचार ही है, जबकि ध्यान है निर्विचार होना। ध्यान या झेन के समतुल्य अंग्रेजी भाषा में कोई शब्द है ही नहीं, क्योंकि' मेडीटेशन ' का स्वयं का अर्थ है-विचार करना, किसी पर विचार एकाग्र करना। एकाग्र करने के लिए कोई वस्तु वहां होनी चाहिए। स्मरण रहे- ध्यान ही मूल शब्द है। ध्यान, बोधिधर्म के साथ ही यात्रा करता हुआ चीन गया और ध्यान ही चीनी भाषा में ' चान ' बन गया। चीन से ही यात्रा करता हुआ ध्यान जापान गया और जापानी भाषा में वह पहले ' झेन ' और फिर ' झेन ' बन गया, लेकिन मूल जड़ है ' ध्यान चान, झेन, झेन। अंग्रेजी में इसकेसमतुल्य कोई शब्द है ही नहीं। ' मेडीटेशन ' -शब्द का अर्थ है सोचना, नियमित रूप से सोचना। ' कनटेम्प्रेशन ' का अर्थ भी सोचना ही है। भले ही वह परमात्मा के बारे में गहन विचार या चिंतन हो, जबकि ध्यान या झेन है निर्विचार स्थिति। यह निर्विचार कृत्य है। विचार-विमर्श को समय की जरूरत होती है।.......