शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-01
हम झेन गुरु के अ--मन के सुंदर संसार में प्रवेश करेंगे। सोसान तीसरे झेन गुरु हैं। उनके संबंध में कुछ अधिक ज्ञात नहीं है। यह ऐसा ही है जैसा होना चाहिए, क्योंकि इतिहास में केवल हिंसा का लेखा--जोखा होता है। इतिहास शांति का लेखा--जोखा नहीं रखता-- यह उसका अभिलेखन कर ही नहीं सकता। सभी लेखे--जोखे उपद्रवों के हैं। जब भी कोई वास्तव में मौन हो जाता है वह सभी अभिलेखों से विलुप्त हो जाता है वह हमारे पागलपन का हिस्सा नहीं रह जाता। इसलिए यह ऐसा ही है जैसा इसे होना चाहिए।
सोसान जीवन भर एक घुमक्कड़ भिक्षु रहा। वह कहीं टिका नहीं वह सदा घूमता रहा। वह एक नदी की तरह रहा, स्थिर तालाब की तरह नहीं। वह एक सतत गति था। बुद्ध के घुमक्कड़ों का यही अर्थ है वे बाह्य जगत में ही नहीं बल्कि आतरिक जगत में भी गृह--विहीन होने चाहिए क्योंकि जब भी तुम घर बनाते हो तुम उससे आसक्त हो जाते हो। उन्हें कहीं जड़ें नहीं जमानी चाहिए सिवाय इस समस्त जगत के उनका कोई घर नहीं है।
सोसान जीवन भर एक घुमक्कड़ भिक्षु रहा। वह कहीं टिका नहीं वह सदा घूमता रहा। वह एक नदी की तरह रहा, स्थिर तालाब की तरह नहीं। वह एक सतत गति था। बुद्ध के घुमक्कड़ों का यही अर्थ है वे बाह्य जगत में ही नहीं बल्कि आतरिक जगत में भी गृह--विहीन होने चाहिए क्योंकि जब भी तुम घर बनाते हो तुम उससे आसक्त हो जाते हो। उन्हें कहीं जड़ें नहीं जमानी चाहिए सिवाय इस समस्त जगत के उनका कोई घर नहीं है।
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