शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-09

सूत्र:

 तथाता के इस जगत में न तो कोई स्व है और न ही स्व के अतिरिक्त कोई और।

इस वास्तविकता से सीधे ही लयबद्ध होने के लिए-जब संशय उठे, बस कहो, 'अद्वैत।

इस 'अद्वैत' में कुछ भी पृथक नहीं है कुछ भी बाहर नहीं है।
कब या कहा कोई अर्थ नहीं रखता; बुद्धत्व का अर्थ है इस सत्य में प्रवेश।

और यह सत्य समय या स्थान में घटने- बढ़ने के पार है;