शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-03
तो फिर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे तुम न जान सकोगे।
वास्तविकता सदा से वहां है बस तुम्हारे हृदय के निकट, तुम्हारी आंखों के निकट, तुम्हारे हाथों के निकट प्रतीक्षा करती हुई। तुम उसे छू सकते हो तुम उसे अनुभव कर सकते हो, तुम उसे जी सकते हो-लेकिन तुम उसका चिंतन नहीं कर सकते। देखना संभव है अनुभूति संभव है, स्पर्श संभव है लेकिन सोच-विचार करना संभव नहीं है। विचार-प्रक्रिया की प्रकृति को समझने की कोशिश करो। विचार सदा किसी के विषय में होता है, वह कभी सीधा-सीधा नहीं होता। तुम वास्तविकता को देख सकते हो, लेकिन तुम्हें इसके विषय में सोचना पड़ेगा और ' विषय में ' एक जाल है,
वास्तविकता सदा से वहां है बस तुम्हारे हृदय के निकट, तुम्हारी आंखों के निकट, तुम्हारे हाथों के निकट प्रतीक्षा करती हुई। तुम उसे छू सकते हो तुम उसे अनुभव कर सकते हो, तुम उसे जी सकते हो-लेकिन तुम उसका चिंतन नहीं कर सकते। देखना संभव है अनुभूति संभव है, स्पर्श संभव है लेकिन सोच-विचार करना संभव नहीं है। विचार-प्रक्रिया की प्रकृति को समझने की कोशिश करो। विचार सदा किसी के विषय में होता है, वह कभी सीधा-सीधा नहीं होता। तुम वास्तविकता को देख सकते हो, लेकिन तुम्हें इसके विषय में सोचना पड़ेगा और ' विषय में ' एक जाल है,
Comments
Post a Comment