Me Mrutyu sikhata hu : Pravachan - 15 bhag - 11

 प्रवचनमाला-- मैं मृत्यु सिखाता हूँ

प्रवचन नं--15

भाग---11....

Me Mrutyu sikhata hu : Pravachan - 15 bhag - 11



सब यात्रा बीज से शुरू होती है और सब यात्रा बीज पर अंत होती है। ध्यान रहे, जो प्रारंभ है, वही अंत है। जो बिगनिंग है, वही ऐंड है। जहां से यात्रा शुरू होगी, वहीं यात्रा का वृत्त पूरा होगा। एक बीज से हम शुरू होते हैं और एक बीज पर हम पन: अंत हो जाते हैं।


सब यात्रा बीज से शुरू होती है और सब यात्रा बीज पर अंत होती है। ध्यान रहे, जो प्रारंभ है, वही अंत है। जो बिगनिंग है, वही ऐंड है। जहां से यात्रा शुरू होगी, वहीं यात्रा का वृत्त पूरा होगा। एक बीज से हम शुरू होते हैं और एक बीज पर हम पुन: अंत हो जाते हैं।


वह जो चेतना मरते वक्त अपने को सिकोड़ लेगी, बीज बनेगी, वह किस केंद्र पर इकट्ठी होगी? जिस केंद्र पर आप जीए थे! जो आपके जीने का सर्वाधिक मूल्यवान केंद्र था, वहीं इकट्ठी हो जाएगी। क्योंकि जहां आप जीए थे, वही केंद्र सक्रिय है। जहां आप जीए थे, कहना चाहिए, वहीं आपके जीवन का प्राण है।


अगर एक आदमी का सारा जीवन सेक्स से ही भरा हुआ जीवन था, उसके पार उसने कुछ भी नहीं जाना, कुछ भी नहीं जीया, अगर धन भी इकट्ठा किया तो भी काम के लिए, यौन के लिए, अगर पद भी पाना चाहा तो काम और यौन के लिए, स्वास्थ्य भी पाना चाहा तो काम के लिए और यौन के लिए, अगर उसकी जिंदगी का वह सबसे बहुत एमफैटिक केंद्र सेक्स था, तो सेक्स के केंद्र पर ही ऊर्जा इकट्ठी हो जाएगी और उसकी यात्रा फिर वहीं से होगी। क्यों? क्योंकि अगला जन्म भी उसकी सेक्स की केंद्र की ही यात्रा की कंटीन्यूटि होगा, उसका सातत्य होगा। तो वह व्यक्ति सेक्स के केंद्र पर इकट्ठा हो जाएगा। और उसके प्राण का जो अंत है, वह सेक्स के केंद्र से ही होगा। उसके प्राण जननेंद्रिय से ही बाहर निकलेंगे।


अगर वह व्यक्ति दूसरे किसी केंद्र पर जीया था, तो उस केंद्र पर इकट्ठा होगा। यानी जिस केंद्र पर हमारा जीवन घूमा था, उसी केंद्र से हम विदा होंगे। जहां हम जीए थे, वहीं से हम मरेंगे। इसलिए कोई योगी आज्ञा—चक्र से विदा हो सकता है। कोई प्रेमी हृदय—चक्र से विदा हो सकता है। कोई परम ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति सहस्रार से विदा होगा। उसका कपाल फूट जाएगा, वह वहां से विदा होगा। हम कहां से विदा होंगे, यह हमारे जीवन का पूरा सारभूत सबूत होगा।


और इन सबके सूत्र खोज लिये गए थे कि मरे हुए आदमी को देखकर कहा जा सकता है कि वह कहां से विदा हुआ। इस सबके सूत्र खोज लिए गये थे। मरे हुए आदमी को देखकर, उसकी लाश को देखकर कहा जा सकता है कि वह कहां से निकला है, किस द्वार का उपयोग किया उसने बहिर्गमन के लिए। ये सब चक्र द्वार भी हैं। ये प्रवेश के द्वार भी हैं, ये विदा होने के द्वार भी हैं। और जो जिस द्वार से निकलेगा, उसी द्वार से प्रवेश करेगा। एक मां के पेट में वह जो नया अणु बनेगा, उस अणु में आत्मा उसी द्वार से प्रवेश करेगी जिस द्वार से वह पिछली मृत्यु में निकली थी। वह उसी द्वार को पहचानती है।


और इसीलिए मां—बाप का चित्त और उनकी चेतना की दशा संभोग के क्षण में निर्णायक होगी कि कौन —सी आत्मा वहां प्रवेश करेगी। क्योंकि मां —बाप की चेतना संभोग के क्षण में जिस केंद्र के निकट होगी, उसी केंद्र को प्रवेश करने वाली चेतना उस गर्भ को ग्रहण कर सकेगी, नहीं तो नहीं कर सकेगी। अगर दो योगस्थ व्यक्ति बिना किसी संभोग की कामना के सिर्फ किसी आत्मा को जन्म देने के लिए प्रयोग कर रहे हैं, तो वे ऊंचे से ऊंचे चक्रों का प्रयोग कर सकते हैं।


इसलिए अच्छी आत्माओं को जन्म लेने के लिए बहुत दिन तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, क्योंकि अच्छा गर्भ मिलना चाहिए। बहुत कठिनाई हो जाती है कि उन्हें ठीक गर्भ मिल सके। इसलिए बहुत सी अच्छी आत्माएं सैकड़ों —सैकड़ों वर्षों तक दोबारा जन्म नहीं ले पातीं। बहुत सी बुरी आत्माओं को भी बड़ी कठिनाई हो जाती है, क्योंकि उनके लिए भी सामान्य गर्भ काम नहीं करता। साधारण आत्माएं तत्काल जन्म ले लेती हैं। इधर मरी, उधर जन्म हुआ, उसमें ज्यादा देर नहीं लगती। क्योंकि उनके योग्य बहुत गर्भ उपलब्ध होते हैं सारी पृथ्वी पर। प्रतिदिन उनके लिए हजारों—लाखों मौके हैं। बहुत मौके हैं इस वक्त। कोई एक लाख अस्सी हजार लोग रोज पैदा होते हैं। मरने वालों की संख्या काटकर इतने लोग बढते हैं। कोई दो लाख आत्माओं के लिए रोज प्रवेश की सुविधा है। लेकिन ये बिलकुल सामान्य तल पर यह सुविधा है।


असामान्य आत्माओं को अगर हम पैदा न कर पाएं तो यह भी हो सकता है, और बहुत बार हुआ है……। इसकी थोड़ी बात खयाल में लेनी अच्छी होगी। बहुत—सी आत्माएं जो इस पृथ्वी ने बड़ी मुश्किल से पैदा कीं, उनको जन्म किसी दूसरी पृथ्वियों पर लेने पड़े हैं। यह पृथ्वी उनके लिए वापिस जन्म देने में असमर्थ हो गई। ऐसा ही समझो तुम कि जैसे हिंदुस्तान में एक वैज्ञानिक को हम पैदा कर लें, लेकिन नौकरी उसको अमरीका में ही मिले। पैदा हम करें; मिट्टी, भोजन, पानी हम दें; जिंदगी हम दें; लेकिन हम उसे कोई जगह न दे पाएं उसके जीवन के लिए। उसको जगह लेनी पड़े अमरीका में। आज सारी दुनिया के अधिकतम वैज्ञानिक अमरीका में इकट्ठे हो गए हैं। हो ही जाएंगे। ऐसे ही इस पृथ्वी पर जिन आत्माओं को हम तैयार तो कर लेते हैं, लेकिन दोबारा जन्म देने के लिए गर्भ नहीं दे पाते, उनको स्वभावत: दूसरे ग्रहों पर खोज करनी पड़ती है।


यदि हमारे में प्रतिभा है कि वैज्ञानिक पैदा कर सके तब तो फिर उसे नौकरी देने की भी प्रतिभा होगी ही।


नहीं, यह जरूरी नहीं है। कठिनाई क्या है कि एक वैज्ञानिक पैदा करना बहुत—सी बातों पर निर्भर है। और एक वैज्ञानिक को नौकरी देना और दूसरी बहुत—सी बातों पर निर्भर है। एक वैज्ञानिक को पैदा करना तो एक वैज्ञानिक आत्मा की पिछली यात्राओं पर निर्भर है। और दो व्यक्तियों के बीच जो संभोग का क्षण है अगर वह क्षण ऐसा है कि उस व्यक्ति को बुद्धि के द्वार से प्रवेश मिल जाए, तो उसे वह प्रवेश मिल जाएगा। वह पैदा भी हो जाएगा। लेकिन एक वैज्ञानिक को नौकरी देना पूरे समाज की व्यवस्था पर निर्भर है। इस वैज्ञानिक को अमरीका में दस हजार रुपए मिल सकते हैं, हिंदुस्तान में हजार मिलेंगे। और फिर इस वैज्ञानिक को अमरीका में एक लेबोरेटरी मिल सकती है जिसके लिए हिंदुस्तान में अभी हजार वर्ष रुकना पड़ेगा तब मिलेगी। और अमरीका में इसका शोध होगा तो वह सरकारी दफ्तरों में पड़ा हुआ सड़ नहीं जाएगा, उसको नोबल प्राइज मिल जाएगी। यहां अगर वह शोध करेगा तो उसका ऊपर का आफिसर ही उसको दबाकर बैठ जाएगा, उसको कभी निकलने नहीं देगा। और निकले भी कभी तो हो सकता है वह नेता के नाम से निकले, आफिसर के नाम से निकले। उसके नाम से कभी उसके शोध का पता ही न चलेगा। यह हजार बातों पर निर्भर: करेगा।


तो जिन व्यक्तियों को हम इस पृथ्वी पर पैदा करते हैं, उनमें बहुत—से व्यक्तियों को दूसरे ग्रहों पर जन्म लेना पड़ता है। असल में इस पृथ्वी तक दूसरे ग्रहों की खबर लाने वाले लोग भी मूलत: किन्हीं दूसरे ग्रहों से आए थे। यह तो आज वैज्ञानिक को खयाल आया है कि कोई पचास हजार ग्रह हैं जिन पर जीवन होगा। लेकिन योगी को यह खयाल बहुत प्राचीन है। योगी के पास कोई उपाय नहीं था कि वह पता लगाए कि और ग्रहों पर कोई होगा। एक ही उपाय था कि ऐसी कुछ आत्माए जो दूसरे ग्रहों से यहां पैदा हुईं, वे खबर ले आई थीं। या इस ग्रह की खबरें भी दूसरे ग्रहों पर ले जाने वाली दूसरी ही आत्माएं हैं।


मनुष्य की चेतना मरते क्षण मै पूरी की पूरी इकट्ठी होगी। अपने सारे संस्कार, अपनी सारी प्रवृत्ति, अपनी सारी वासना, अपने जीवन का सारा सारभूत, एसेंशियल, जिसको कहें परफ्यूम, सारे जीवन की सुगंध या दुर्गंध, उसको इकट्ठी लेकर खड़ी हो जाएगी और यात्रा पर निकल जाएगी।


यह यात्रा साधारणत: अ—चुनी होगी। इसमें कोई चुनाव नहीं होगा, आटोमेटिक होगी। यह वैसे ही होगी जैसे कि हम पानी गिराएं और वह गड्डे की तरफ —बह जाए और गड्ढे में भर जाए। साधारणत: यह ऐसे ही होगा कि एक गर्भ एक गड्डे का काम करेगा और एक चेतना उपलब्ध होगी निकट और वह प्रवेश कर जाएगी।


इसलिए आम तौर से एक आदमी ज्यादातर अपने ही समाज, अपने ही देश में पैदा होता रहता है। बहुत कम परिवर्तन होते है। परिवर्तन तभी होते हैं जब कि गर्भ नहीं मिलता। इसलिए बहुत हैरानी की बात है कि पिछले दो सौ वर्षों में हिंदुस्‍तान—में पैदा हुई बहुत—सी कीमती आत्माओं को योरोप में पैदा होना पड़ा। जैसे एनी बीसेंट हो या. बलावट्सकी हों या लीड बीटर हों या अल्काट हों, ये सारी की सारी भारत की आत्माएँ हैं, लेकिन इनको पैदा होना पड़ा योरोप में। जैसे लोबसांग राम्पा है, वह तिब्बतन आत्मा है, लेकिन पैदा —हुई योरोप में। इसके कारण हो गए। क्योंकि वे पैदा जहां हुई थीं वहा फिर गर्भ नहीं मिल सका और गभें?इ ५मुइrऐंइ कहीं और खोजना पड़ा।


अन्यथा साधारण व्‍यक्‍ति तो तत्काल पैदा हो जाता है। वह ऐसे ही जैसे कि इस मुहल्ले से आप यह घर छोड़े, तो पहले आप इसी मुहल्ले में घर खोजें स्वभावत:। और यहां न मिले तब कहीं आप दूसरे मुहल्ले में घर खोजने जाएं। और बंबई में न मिले तब आप सबर्ब में जाएं। और सबर्ब में भी न मिले तब कहीं आगे निकलें। लेकिन अगर मिल जाए तो बात खतम हो गई।


इसका बड़ा अदभुत उपयोग किया गया था। उस उपयोग के संबंध में भी दो बातें खयाल में ले लेनी जरूरी हैं और इस समय और भी जरूरी हो गई हैं। इसका एक जो सबसे अदभुत उपयोग किया गया था वह हिंदुस्तान में किया गया था वर्ण बनाकर। उसका उपयोग बड़ा कीमती था।


हिंदुस्तान ने चार वर्णों में तोड़ दिया था पूरे समाज को। और यह कोशिश की थी कि ब्राह्मण की आत्मा मरे तो वह ब्राह्मण के वर्ण में प्रवेश कर जाए, क्षत्रिय की आत्मा मरे तो वह क्षत्रिय के वर्ण में प्रवेश कर जाए। स्वभावत: अगर एक समाज में वर्ण सुनिश्चित हो, तो क्षत्रिय जब मरेगा तो बहुत संभावना नेबरहुड में ही खोजने की है। वह क्षत्रिय में ही प्रवेश कर जाएगा। और अगर एक व्यक्ति की आत्मा दस —पांच जन्मों तक क्षत्रिय रह जाए, तो जैसी क्षत्रिय होगी वैसा क्षत्रिय आप एक दिन मिलिट्री की ट्रेनिंग देकर पैदा नहीं कर सकते हैं। और अगर एक व्यक्ति की आत्मा दस—बीस जन्मों में ब्राह्मण के घर में पैदा होती चली जाए, तो जैसा शुद्धतम ब्राह्मणत्व पैदा होगा, वैसा आप कोई गुरुकुल बनाकर और आदमी को शिक्षा देकर तैयार नहीं कर सकते।


यह तुम जानकर हैरान होगे कि एक जिंदगी में हमने शिक्षा का उपाय सोचा है, कुछ लोगों ने अनंत जिंदगियों में भी शिक्षा की व्यवस्था खोजी है। और इसलिए बड़ा अदभुत प्रयोग था, लेकिन वह सड़ गया। सड़ा इसलिए नहीं कि गलत था, सड़ा इसलिए कि उसके मूल सूत्र खो गए। और जो उसके दावेदार हैं, उनके पास कोई भी सूत्र नहीं है। जो दावेदार हैं, उनके पास कोई सूत्र नहीं है। ब्राह्मण के पास कोई सूत्र नहीं है, शंकराचार्य के पास कोई सूत्र नहीं है कि वे दावा कर सकें। बस दावा इतना ही है कि हमारे शास्त्र में लिखा हुआ है कि ब्राह्मण ब्राह्मण है, शूद्र शूद्र है। शास्त्र नहीं चल सकते, वैज्ञानिक सूत्र चलते हैं।


इसलिए एक अदभुत घटना है कि इस मुल्क ने एक बड़ा भारी प्रयोग किया था जन्मांतर का। यानी एक जन्म में ही हम आदमी को तैयार नहीं कर रहे हैं, हम आगे जन्मों के लिए भी उसे सुनियोजित चैनलाइजेशन दे रहे हैं, उसे. ठीक नहरें दे रहे हैं कि वह अगली यात्रा पर भी फिर एक वर्ग विशेष को पकड़कर यात्रा कर सके। क्योंकि हो सकता है कि एक ब्राह्मण को शूद्र के घर में पैदा होना पड़े और पिछले जन्मों में जो उसने कमाया था, पिछले जन्मों में उसने जो पाया था, वह अगले जन्मों में उसके अनुकूल व्यवस्था पूरी न मिलने से उसे बड़ी अड़चन हो जाए। और यह भी हो सकता है कि जो काम ब्राह्मण के घर में ही पैदा होकर दस दिन में ही हो जाता, वह शूद्र के घर में दस साल में न हो पाए। तो इतनी दूर तक विकास की धारणा की जो दृष्टि थी, उसने मुल्क को सीधे हिस्सों में तोड़ दिया था। और व्यवस्था की थी नेबरहुड्स की, ताकि इनके भीतर जन्मों—जन्मों तक….।


अब जैसे कि महावीर या बुद्ध के चौबीस जन्म सब क्षत्रिय परंपरा में हैं। वह सारा का सारा व्यवस्थित एक धारा में चल रहा है। तो एक आदमी की पूरी की पूरी तैयारी चल रही है। जहां से तैयारी छूटी थी, दूसरी तैयारी होने में बीच में कोई गैप नहीं हो पाता, कोई अंतराल नहीं हो पाता—एक सातत्य है।


इसलिए हम बहुत अनूठे आदमी पैदा कर पाए। ऐसे अनूठे आदमियों को पैदा करना अब बहुत कठिनाई की बात है। सांयोगिक है कि ऐसे आदमी पैदा हो जाएं, लेकिन व्यवस्थित रूप से ऐसे आदमियों को पैदा करना बहुत ही कठिनाई की बात हो गई है।


समाप्‍त




ओशो