हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्-(प्रवचन-04)
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्
प्रवचन-चौथा-(मन के पार)
Published as a booklet in 1972
प्रश्नः क्या निराकार वस्तु का ध्यान हो सकता है? और यदि हो सकता है तो क्या निराकार, निराकार ही बना रहेगा?
ध्यान का साकार या निराकार से कोई भी संबंध नहीं है। ध्यान का विषय-वस्तु से ही कोई संबंध नहीं है। ध्यान है विषय-वस्तु रहितता। प्रगाढ़ निद्रा की भांति।
लेकिन निद्रा में चेतना नहीं है। और ध्यान में चेतना पूर्णरूपेण है। अर्थात निद्रा अचेतन ध्यान है। या ध्यान सचेतन निद्रा है।
प्रवचन-चौथा-(मन के पार)
Published as a booklet in 1972
प्रश्नः क्या निराकार वस्तु का ध्यान हो सकता है? और यदि हो सकता है तो क्या निराकार, निराकार ही बना रहेगा?
ध्यान का साकार या निराकार से कोई भी संबंध नहीं है। ध्यान का विषय-वस्तु से ही कोई संबंध नहीं है। ध्यान है विषय-वस्तु रहितता। प्रगाढ़ निद्रा की भांति।
लेकिन निद्रा में चेतना नहीं है। और ध्यान में चेतना पूर्णरूपेण है। अर्थात निद्रा अचेतन ध्यान है। या ध्यान सचेतन निद्रा है।
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