अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)-मनसा मोहनी

अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)  

तड़प है परंतु दर्द कहां है उसमें,

वो तो एक एहसास है, पकड़ कहां है उसमें।

वो दूर है मगर दूर कहां है हमसें।

तार बिंधे है विरह के, राग कहां है इनमें।