तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-09


आह, अस्तित्व का सौंदर्य, इसका शुद्ध आनंद, उल्लास, गीत और नृत्य! पर हम तो यहां है नहीं। हम हैं ऐसा दिखाई तो पड़ता है पर हम लगभग हैं अस्तित्व-हीन-क्योंकि अस्तित्व के साथ संपर्क हमने खो दिया है। इसमे अपनी जड़ों को हमनें खो दिया है। हम उस वृक्ष की भांति है, जिसकी जड़ें उखड़ गई हों। अब जीवन सत्व उसमें नहीं बहता, उसका रस सूख गया है। अब उसमें फूल या फल लगेंगे नहीं। अब तो पक्षी भी हममें शरण लेने के लिए नहीं आते।





हम मुर्दा हैं। क्योंकि हम अभी तक पैदा ही नहीं हुए हैं। हमने भौतिक जन्म को ही अपना जन्म मान लिया है। वह हमारा जन्म नहीं है। हम अभी तक मात्र संभावनाएं हैं। हम वास्तविक अभी नहीं हुए हैं। इसीलिए यह संताप है। वास्तविक तो आनंदपूर्ण है, संभावना दुखद है। ऐसा क्यों है? क्योंकि विश्रांति में नहीं हो सकता। संभाव्य तो निरंतर बेचैन है—इसे बेचैन होना ही है। कोई चीज होने को है! वह अधर में लटकी है। यह विस्मृति में है।