तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-08


पहला प्रश्न: ओशो, मैं एक मेढक हूं: मैं जानता हूं कि मैं एक मेढक हूं, क्योंकि मैं धुंधले, गहरे पानी में तैरना और चिपचिपी कीचड़ में उछलना-कूदना पसंद करता हूं। और यह मधु क्या होता है? यदि एक मेढक अस्तित्व की एक अनादृत दशा में हो सके, क्या वह एक मधुमक्खी बन जाएगा?





निश्चय ही! मधुमक्खी बन जाना हर किसी की संभावना है। हर कोई मधुमक्खी हो जाने में विकसित हो सकता है। एक अनावृत, जीवंत, स्वस्फूर्त जीवन, क्षण-क्षण वाला जीवन, इसका द्वार है, इसकी कुंजी है। यदि कोई ऐसा जी सके कि वह जीना अतीत से न हो, तब वह मधुमक्खी है, और तब चारों तरफ मधु ही मधु है।





‘मेढक’ से सराह का तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति से है जो अतीत से जीता है, जो अपनी अतीत की स्मृतियों के पिंजड़े में कैद रहता है। जब तुम अतीत में जीते हो, तुम बस जीने का आभास मात्र देता है। वास्तव में तुम जीते नहीं हो। जब तुम अतीत में जीते हो, तुम एक यंत्र की भांति जीते हो। एक मनुष्य की भांति नहीं। जब तुम अतीत से जीते हो, यह जीना एक पुनरावृति होता है। एक नीरस पुनरावृति--तुम जीवन और अस्तित्व के आह्लाद से, आनंद से चूक रहे होते हो। वहीं तो ‘मधु’ है: जीवन का आनंद, बस यहां-अभी होने का माधुर्य, बस होने में समर्थ हो पाने की मधुरता। वह आनंद ही मधु है...और चारों तरफ लाखों फूल खिल रहे हैं। सारा अस्तित्व फूलों से भरा है।