तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-07

सत्य है। यह बस है। यह मात्र है। यह न कभी अस्तित्व में आता है, न कभी अस्तित्व में आता है और न ही कभी अस्तित्व से जाता है। बस यह यहा है, न कभी आता है न कभी जाता है। यह सदा शेष ही रहता है। सच तो यह है कि जो शेष रहता है उसी को हम सत्य कहते हैं। यह पूर्ण से पूर्ण को निकालने पर पूर्ण ही बचता है। सत्य प्रारंभ में भी है, यह मध्य में भी है, यह अंत में भी है। सच तो यह है कि न कोई प्रारंभ है इसका और न ही कोई अंत। यह संपूर्ण में समाया है, हर एक जगह।

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