वृक्ष और पत्थर –(कविता) (मनसा दसघरा)


वृक्ष और पत्थर –(कविता) (मनसा दसघरा)


एक वृक्ष ने जब पुछा अपने

संग साथी पत्थर से

तुम किस तरह के वृक्ष हो,

न तुम में पत्ते आते है

न ही खिलते है कोई पुष्प।

शायद यहीं अपने होने की

पीड़ा उसे देगी एक दिन

उत्ंग उठने का साहस

और बन कर कोई हिमालय

वह समेट लेगा अपनी ही

गोद में हजारों वृक्षों को।

छू लेगा अंबर की नीलिमा को

परंतु चरण टिके रहेगे उसके

धरा के आगोश में ही।


यही तो उसकी पुर्णता है।

उसकी है यही पहचान।

पत्थर ने देखा उस वृक्ष को

और यूं तुनक कर लगा हंसने

जैसे उसकी बात ही उसका उत्तर है

और फिर दोनो एक दूसरे के संग

के आनंद में डूब गए।

वृक्ष किलाकारी मार कर झूमने लगा हवा में

पत्थर मौन अंतस के राग में डूब गया।

मिट गया होने न होने का भेद पल में।

मनसा-मोहनी