हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्-(प्रवचन-03)

हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्
तीसरा प्रवचन-(ध्यानः अंतस अनुभूति)
 प्रश्नः मैं थोड़ी साधना करती हूं, खास कर उसके बारे में मुझे पूछना है।

साधना करेगी फिर तो पूछ ही न सकेगी। साधना इतनी और उतनी नहीं होती। मात्रा होती नहीं। यह हमारी बड़ी भ्रांति है। क्योंकि हम चीजों की दुनिया से परिचित हैं, इसलिए हमेशा क्वांटिटी के हिसाब से सोचते हैं। चीजों की दुनिया से परिचित होने के कारण यह भ्रांति होती है, क्योंकि चीजों में तो क्वांटिटी है और भीतर सिर्फ क्वालिटी है, क्वांटिटी नहीं है! भाव की दुनिया में कोई मात्रा नहीं है। इसलिए हम ऐसा नहीं कह सकते कि हम किसी को कम प्रेम करते हैं। या तो करते हैं या नहीं करते हैं। कम और ज्यादा प्रेम नहीं हो सकता। हो ही नहीं सकता। क्योंकि वहां नापने का उपाय ही नहीं है। या तो हम प्रेम करते हैं या हम नहीं करते हैं।

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