सुदर्शन
कृष्ण के टोटल प्रेजेंस, मौजूदगी की खबर वह पांच इंद्रियों के प्रतीक पांचजन्य से होती है। तो इसलिए पांच इंद्रियों के प्रतीक पांचजन्य शंख को वे बजाते हैं और वे कहते हैं कि मेरी समस्त इंद्रियों सहित मैं यहां मौजूद हूं। युद्ध करने को मौजूद नहीं। इसका केवल मतलब इतना है कि यह तय करके आया नहीं। युद्ध करने का कोई भी निर्णय इसके मन में नहीं है। युद्ध से इसे कोई प्रयोजन भी नहीं है, इसे कुछ मिलने जाने वाला भी नहीं है, इसका युद्ध से कोई संबंध भी नहीं है। नो-पार्टी है यह आदमी। कौन जीतता है, कौन हारता है, इससे इसे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। इसका अपना कोई हित, कोई स्वार्थ नहीं है। लेकिन फिर भी यह आदमी एक क्षण आता है युद्ध का और युद्ध में उतर जाता है और सुदर्शन चक्र को हाथ में ले लेता है वह उनके चक्र का नाम है। वह नाम भी बड़ा प्रतीकात्मक है। असल में जिन लोगों ने काव्य लिखे उन्होंने शब्दों के साथ बड़ी मेहनत की है। काव्य का तो प्राण ही शब्द है। और शब्दों के साथ बड़ी उन्होंने छेनी-हथौड़ी लेकर सैकड़ों वर्ष तक मेहनत की है। अब कृष्ण का जो चक्र है, उसको नाम दिया है सुदर्शन का। मृत्यु का वह वाहक है और नाम सुदर्शन का है। मृत्यु देखने में सुंदर नहीं होती, न सुदर्शन होती है। लेकिन कृष्ण के हाथ में मृत्यु भी सुदर्शन बन जाती है। उतना ही अर्थ है। हम एटम बम को सुदर्शन नाम नहीं दे सकते। एटम जैसा ही संघातक है वह। अचूक है उसकी चोट। मौत उसकी निश्र्चित है उससे। वह छूटता है तो बस मार कर ही लौटता है। मृत्यु जहां बिलकुल निश्र्चित हो, वहां भी हम उस मृत्यु के शस्त्र को सुदर्शन कहेंगे? लेकिन कहा तो है। असल में कृष्ण जैसे आदमी के हाथ में मृत्यु भी सुदर्शन हो जाती है। हिटलर जैसे आदमी के हाथ में फूल भी सुदर्शन नहीं रह जाता है। सवाल यह नहीं है कि क्या है आपके हाथ में, सवाल सदा यही है कि हाथ किसका है। कृष्ण के हाथ से मरना भी आनंदपूर्ण हो सकता है। और उस युद्ध के स्थल पर खड़े हुए मित्र और विपक्षी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके हाथ से मरना आनंदपूर्ण हो सकता है। वह भी सौभाग्य का क्षण हो सकता है। इसलिए उनके शस्त्र को भी नाम जो देते हैं हम, वह सुदर्शन का नाम दिया है। एक क्षण आता है युद्ध का, वह सुदर्शन हाथ में लेकर युद्ध में कूद पड़ते हैं। यह उनके स्पांटेनियस, सहज होने का प्रतीक है। ऐसा आदमी क्षण में जीता है, मोमेंट टु मोमेंट। ऐसा आदमी पिछले क्षण से बंधा हुआ नहीं होता।
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