ब्रह्मांड

कृष्ण का जो व्यक्तित्व है, यह पाजिटिव है। वह विधायक है, वह निषेधात्मक नहीं है। वे जीवन में किसी भी चीज का निषेध नहीं करते। वे अहंकार का निषेध भी करते नहीं। वे तो कहते हैं, अहंकार को इतना बड़ा कर लो कि सभी उसमें समा जाए। तू बचे ही न, तो फिर स्वयं को मैं कहने का कोई उपाय न रह जाए। हम अपने को ‘मैं’ तभी तक कह सकते हैं जब तक ‘तू’ बाहर अलग खड़ा है। तू के विरोध में ही मैं की आवाज है। तू गिर जाए, तू न बचे, तो मैं भी बचेगा नहीं। मैं इतना बड़ा हो जाए...इसलिए उपनिषद के ऋषि कह सके: अहं ब्रह्मास्मि। वह यह कह सके, मैं ही ब्रह्म हूं। इसका यह मतलब नहीं है कि तू ब्रह्म नहीं है। इसका मतलब यह है कि तू तो है ही नहीं, मैं ही हूं। वह जो हवाओं में लहरा रहा है वह भी मैं हूं और जो वृक्षों में लहर खा रहा है वह भी मैं ही हूं। वह जो जन्मा है वह भी मैं ही हूं, जो मरेगा वह भी मैं ही हूं। वह जो पृथ्वी है वह भी मैं ही हूं, जो आकाश है वह भी मैं ही हूं। मेरे अतिरिक्त कोई भी नहीं है। इसलिए अब मैं के बचने की भी कोई जगह नहीं बची। मैं किससे कहूं कि मैं हूं? किसके विरोध में कहूं कि मैं हूं? तो कृष्ण का पूरा का पूरा व्यक्तित्व विराट के साथ फैलाव का है, विस्तार का है। इसलिए कृष्ण कह सकते हैं, मैं ब्रह्म हूं। इसमें कोई अहंकार नहीं है। यह भाषा में ही मैं का प्रयोग है, मैं जैसा कोई पीछे बचा नहीं है।

एक दूसरा रास्ता, जो मैंने कहा, निषेध का है, नकार का है, इनकार का है, तोड़ने का है, त्याग का है--छोड़ते जाएं। धन ‘मैं’ को मजबूत करता है, धन को छोड़ दें। अमीर का अहंकार होता है, लेकिन गरीब का नहीं होता, इस भूल में मत पड़ जाना। गरीब का भी अहंकार होता है। गरीब होता है, पुअर ईगो होती है। धन का दावा नहीं कर सकता। गृहस्थी का अहंकार होता है, लेकिन संन्यासी का नहीं होता, ऐसा मत सोचना। संन्यासी का भी अहंकार होता है। अगर मैं छोड़ता चला जाऊं, तो जिन-जिन चीजों से अहंकार बढ़ता है, मजबूत होता है, वह सब छोड़ दूं--धन छोड़ दूं, मकान छोड़ दूं, पत्नी छोड़ दूं, बच्चे छोड़ दूं, घर-द्वार छोड़ दूं, तो मेरे अहंकार को टिकने की कोई जगह न रह जाएगी, कोई खूंटी न रह जाएगी जहां मैं अहंकार को टांग सकूं और कह सकूं कि मैं धनी हूं, कह सकूं कि मैं ज्ञानी हूं, कह सकूं कि मैं त्यागी हूं, ऐसी कोई जगह न रह जाएगी, लेकिन इससे मैं मिट नहीं जाऊंगा। और जब मेरे मैं को टिकने के लिए कोई खूंटी नहीं रहेगी, तो मैं फिर बहुत सूक्ष्म में मुझसे ही टिका रह जाएगा। फिर आखिर में मैं ही रह जाऊंगा।

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