बोध

आचरणवादी मनस्विद मनुष्य को एक यंत्र से ज्यादा नहीं मानते। मनुष्य में कोई आत्मा नहीं है। इसलिए मनुष्य का सारा आचरण संस्कार मात्र है। अगर ठीक आचरण को पुरस्कृत किया जाए तो वह बढ़ेगा। गलत आचरण को दंडित किया जाए तो वह घटेगा। मनुष्य शायद समाज के ज्यादा अनुकूल बनाया जा सके, समाज जैसा चाहता है वैसा मनुष्य से करवाया जा सके, राज्य के हाथ में आचरणवादी मनोवैज्ञानिक बड़ी महत्वपूर्ण शक्ति दे देंगे; जो न हथियारों से मिलती है, न पुलिस अदालतों से मिलती है। मनुष्य और भी पंगु हो जाएगा, श्रेष्ठ नहीं। मनुष्य का आचरण शायद समाज के अनुकूल हो जाए, शायद अपराध कम हों, कारागृह में लोग कम हों; लेकिन संतत्व का आविर्भाव सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। वह जो श्रेष्ठ मनुष्य है, उसकी श्रेष्ठता कहां है? उसके आचरण में नहीं, उसके बोध में है। उसकी श्रेष्ठता, वह क्या करता है, इसमें नहीं है। वह क्या है, इसमें है। यह तो मनुष्य का सर्वाधिक पतन हुआ। उसके साथ व्यवहार यंत्र का हो गया। यंत्र कुशल हो सकता है, अकुशल हो सकता है। श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ का कोई सवाल न रहा। जिस मनुष्य मे  आचरण या परिवर्तन जबरदस्ती आते हैं, या लादे जाते वे मनुष्य की आत्मा का हनन, आत्मा को नष्ट करते हैं। जीवन में केवल वे ही परिवर्तन स्वागत-योग्य हैं, जो स्वेच्छा से आते हैं, जो तुम्हारे बोध और समझ का परिणाम होते हैं। बुद्ध का आखिरी वचन इस पृथ्वी पर विदा होते वक्त स्मरण रखने योग्य है। वह वचन है: अप्प दीपो भव! अपने दीये खुद बनो!तुम्हारी श्रेष्ठता तुम्हारी स्वतंत्रता से आविर्भूत होगी। हां, तुम्हारा आचरण दूसरे संचालित कर सकते हैं। इसलिए मैंने आचरण को नीति से ज्यादा जगह नहीं दी है। अंतस धर्म है; आचरण नीति है। नीति तुम्हें समाज के योग्य बना देती हो, परमात्मा के योग्य नहीं बनाती। स्वतंत्रता को तुम कसौटी मानो। मोक्ष को लक्ष्य मानो। और इंच-इंच तुम्हें अपनी स्वतंत्रता को बढ़ाते जाना है। एक चेष्टा ध्यान में रखो कि तुम स्वयं ही होने को पैदा हुए हो, किसी और की प्रतिलिपि नहीं। किसी और को मान कर चलने के लिए तुम्हारा जन्म नहीं हुआ है। तुम्हारी नियति तुम्हारे भीतर छिपी है। अगर तुम्हें अपनी नियति पानी है तो स्वयं होने की उदघोषणा करते रहना। झुकना मत जबरदस्ती के सामने। गुलाम मत बनना। न किसी को गुलाम बनाना, न किसी के गुलाम बनना। अपनी स्वतंत्रता को बचाना और दूसरे की स्वतंत्रता की रक्षा करना। तो ही तुम्हारे भीतर श्रेष्ठ मनुष्य का जन्म होगा। अन्यथा कोई उपाय नहीं है।

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