दिव्यता

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दो तरह की जिंदगियां होती हैं। एक जिंदगी होती है श्रृंखलाबद्ध। और एक जिंदगी होती है एटामिक। जो आदमी श्रृंखला में जीता है, उसके कल और आज के बीच सेतु होता है। उसका आज उसके कल से निकलता है। उसकी जिंदगी उसके मरे हुए हिस्सों से निकलती है। उसका ज्ञान उसकी स्मृति से निकलता है। उसका आज का होना उसके कल की राख से निकलता है। उसकी जिंदगी का फूल उसकी कब्र पर खिलता है।

लेकिन एक दूसरा जीवन है। वह जीवन श्रृंखला का जीवन नहीं है, आणविक जीवन है। उसमें आज का होना कल से नहीं निकलता, आज से ही निकलता है। यह आज का जो सारा अस्तित्व है, इससे ही निःसृत होता है। मेरे कल का जो श्रृंखलाबद्ध स्मृति का अस्तित्व है, मेरा जो संस्कार का अस्तित्व है, मेरी जो कंडीशनिंग है, उससे नहीं निकलता मेरा आज का होना। आज के इस विराट अस्तित्व से, आज के एक्झिस्टेंस से, आज के अस्तित्व से निःसृत होता है। एक्झिस्टेंशियल है। आज के क्षण से निकलता है, आने वाले क्षण में फिर उस क्षण से निकलता है, फिर आने वाले क्षण में उस क्षण से निकलता है। श्रृंखला ऐसे जीवन में भी होती है, लेकिन सेतुबद्ध नहीं होती। रोज-रोज प्रतिपल निकलता है। ऐसा आदमी हर क्षण को जीता है और हर क्षण को मर जाता है। आज जीता है, आज मर जाता है। आज रात सोता है, आज के लिए मर जाता है। कल सुबह फिर जीता है, फिर जगता है। प्रतिपल जीना और प्रतिपल मर जाना--डाइंग टु एवरी मोमेंट, तभी वह प्रतिपल नया होकर जन्म लेता है। तो वह प्रतिपल नया है और कभी पुराना नहीं पड़ता। वैसा आदमी सदा जवान है। ऐसा आदमी सदा युवा है, ऐसा आदमी सदा ताजा है। और उसका जो होना निकलता है वह समग्र अस्तित्व से निकलता है, इसलिए उसका होना भागवत है। हम भगवान का जो अर्थ करें, मैं जो करूं भगवान का अर्थ, वह यही है। भगवान का जीवन एटामिक है, आणविक है, एक्झिस्टेंशियल है, अस्तित्व से निकलता है, सत से निकलता है, रोज-रोज प्रतिपल, पल-पल निकलता है, होता है। उसका न कोई अतीत है, न कोई भविष्य है, सिर्फ वर्तमान है। कृष्ण को अगर भगवान कहा जा सका, भागवत चेतना कहा जा सका, डिवाइन कांशसनेस कहा जा सका, उसका और कोई अर्थ नहीं है। उसका यह मतलब नहीं है कि कहीं कोई भगवान बैठा है और वह इस आदमी में उतर आया है। उसका इतना ही मतलब है कि भगवान अर्थात समग्र, दि टोटल, इस आदमी का होना समग्र से ही निकलता चला जाता है। इसलिए इस आदमी में अगर हम कभी कंसिस्टेंसी खोजने जाएं तो थोड़ी दिक्कत में पड़ेंगे। ऐसे आदमी में अगर हम संगति खोजने जाएं, श्रृंखला खोजने जाएं, तो हमें बहुत सी चीजों को इग्नोर करना पड़ेगा। या बहुत सी चीजों को जबरदस्ती समझाना पड़ेगा। या बहुत सी चीजों को किसी तरह तालमेल बिठाना पड़ेगा। या कहना पड़ेगा कि लीला है। जब हमारी समझ में नहीं पड़ेगा तो कहना पड़ेगा कि समझ में नहीं पड़ता है, लीला है। लेकिन कठिनाई और अड़चन जो आ रही है वह सीरियल एक्झिस्टेंस और स्पांटेनियस एक्झिस्टेंस श्रृंखलाबद्ध अस्तित्व और सहज अस्तित्व, इनको न समझने से आती है।

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