मृत्युंजय

पांच इंद्रियां तुम्हारे जीवन का द्वार हैं। उनसे तुम जीवन में प्रवेश करते हो। उनके बिना तुम्हारा जीवन से संबंध न हो सकेगा। लेकिन जितने तुम उनके भीतर से प्रवेश करते हो उतने ही अपने से दूर निकल जाते हो। और हर इंद्रिय के भीतर छिपा हुआ ध्यान है। क्योंकि इंद्रिय जब बाहर जाती है, तो तुम्हारा ध्यान बाहर जाता है। वह ध्यान के बाहर जाने का मार्ग है। इसलिए अक्सर ऐसा हो जाएगा कि अगर तुम्हारा ध्यान एक इंद्रिय से उतर गया हो, तो दूसरी इंद्रियों का तुम्हें पता न चलेगा। क्योंकि पता इंद्रियों से नहीं चलता, ध्यान से चलता है। बोधमात्र ध्यान का है।

पंच परमाण पंच परधान। पंचे पावहि दरगहि मानु।।
पंचे सोहहि दरि राजानु। पंचा का गुरु एकु धिआनु।।
- गुरु नानक...

‘पंच प्रमाण होते हैं और पंच ही प्रधान होते हैं। पंच का ही उसके द्वार पर सम्मान होता है। पंच ही राजा के दरबार में शोभा पाते हैं। पंच का एक ध्यान ही गुरु होता है।’

‘पांच का एक गुरु है और वह ध्यान है।’ अगर तुम पांच में बिखरे रहे तो भटक जाओगे। अगर तुमने एक को पकड़ लिया तो तुम उपलब्ध हो जाओगे। कबीर ने एक पद कहा है। राह से चलते, एक स्त्री को चक्की पीसते कबीर ने देखा और कहा कि दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय। ये दो जो पाट हैं, इन के बीच जो भी पड़ गया, वह पिस गया। कबीर अपने शिष्यों को कह रहे थे कि ऐसे ही द्वैत की चक्की के बीच जो पड़ गया, वह पिस गया, वह बच न सका। कबीर के बेटे ने कहा, लेकिन इस चक्की में एक चीज और है। इसमें बीच में एक कील है। जिसने उसका सहारा ले लिया, उसके संबंध में भी कुछ कहें। तो कबीर ने दूसरे पद में कील का स्मरण किया है। कहा है कि दो पाटों के बीच में जो पड़ गया, वह तो नहीं बचा; लेकिन जिसने दो के बीच उस एक का सहारा ले लिया, उसे फिर कोई न मिटा सका। चक्की में भी जो गेहूं का दाना कील का सहारा ले लेता है फिर दो पाट उसे पीस नहीं पाते। तो चाहे दो कहो, चाहे तीन कहो, चाहे पांच कहो, चाहे नौ कहो, चाहे अनंत-अनेक कहो। भटकाव के बहुत नाम हो सकते हैं, पहुंचने का नाम एक है। फिर तुम जो भी भटकाव चुनोगे, उससे गुजरने की प्रक्रियाएं अलग-अलग हो जाएंगी। अगर नानक की इस प्रक्रिया को समझना हो तो इसका अर्थ हुआ कि जब तुम भोजन करो, तब ध्यान पर ध्यान देना। भोजन भीतर जा रहा है, स्वाद निर्मित हो रहा है, तुम ध्यानपूर्वक इस स्वाद को लेना। अगर तुमने ध्यानपूर्वक यह स्वाद लिया तो तुम थोड़ी ही देर में पाओगे कि स्वाद तो खो गया, ध्यान हाथ में रह गया। क्योंकि ध्यान बड़ी प्रज्वलित अग्नि है। स्वाद तो जल कर राख हो जाएगा, ध्यान हाथ में रह जाएगा। तुम एक सुंदर फूल को देख रहे हो, ध्यानपूर्वक देखना। थोड़ी ही देर में तुम पाओगे, फूल तो खो गया, ध्यान हाथ में रह गया। क्योंकि फूल तो सपने जैसा है, ध्यान शाश्वत है। हर इंद्रिय में अगर तुमने सावधानी बरती, तो तुम पाओगे इंद्रिय के रूप तो खो जाते हैं, निरूप, अरूप ध्यान हाथ में रह जाता है। तो नानक कहते हैं, इन पंच इंद्रियों का एक ही गुरु है और वह ध्यान है। और उसी एक ध्यान में पांचों इंद्रियां अपने जल को डालती हैं। और उस ध्यान को जिसने पकड़ लिया, फिर उसे मिटाने वाला कोई भी नहीं।

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