अखंड

मनुष्य को खंडों में तोड़ना और फिर किसी एक खंड से सत्य को जानने की कोशिश करना, अखंड सत्य को जानने का द्वार नहीं बन सकता है। अखंड को जानना हो तो अखंड मनुष्य ही जान सकता है। न तो कर्म से जाना जा सकता है, क्योंकि कर्म मनुष्य का एक खंड है। न ज्ञान से जाना जा सकता है, क्योंकि ज्ञान भी मनुष्य का एक खंड है। और न भाव से जाना जा सकता है, भक्ति से, क्योंकि वह भी मनुष्य का एक खंड है। अखंड से जाना जा सकता है। और ध्यान रहे, इन तीनों को जोड़ कर अखंड नहीं बनता। इन तीनों को छोड़ कर जो शेष रह जाता है, वह अखंड है। जोड़ से कभी अखंड नहीं बनता। जोड़ में खंड मौजूद ही रहते हैं। बुद्धि को, भाव को, कर्म को जोड़ने के भी प्रयास किए गए हैं--कि इन तीनों को हम जोड़ लें, लेकिन इन तीनों को जोड़ कर जो बनता है, वह अखंड नहीं है। क्योंकि जो जोड़ कर बनता है, वह अखंड हो ही नहीं सकता। उसमें खंड मौजूद रहेंगे ही। जुड़े हुए होंगे, लेकिन मौजूद होंगे। अखंड तो खंडों से मुक्त होकर ही मिलता है। ट्रांसेंडेंस से मिलता है, अतिक्रमण से मिलता है। जब हम खंडों के ऊपर उठ जाते हैं, तब मिलता है। अखंड जोड़ नहीं है, अखंड खंड से मुक्त हो जाना है।मनुष्य का मन खंडन की प्रक्रिया है। मनुष्य का जो मन है, वह चीजों को खंड-खंड करके देखता है। जैसे आपने सूरज की किरण देखी है, सूरज की किरण अगर कांच के, प्रिज्म के टुकड़े में से निकाली जाए तो खंड-खंड हो जाती है। सात टुकड़ों में टूट जाती है। सात रंग पैदा हो जाते हैं। सूरज की किरण सिर्फ शुभ्र है। शुभ्र कोई रंग नहीं है। शुभ्र कोई रंग नहीं है! जब प्रिज्म से किरण टूटती है, तब सात रंग दिखाई पड़ने शुरू होते हैं। बुद्धि का जो प्रिज्म है, बुद्धि का जो टुकड़ा है, बुद्धि का जो देखने का ढंग है वह चीजों को तोड़ कर देखने का ढंग है। बुद्धि सदा तोड़ कर ही देख सकती है। बुद्धि कभी इकट्ठे को नहीं देख सकती। बुद्धि सदा खंड को देख सकती है। अखंड को नहीं देख सकती। अखंड सत्य को जानना हो तो मन को पार करना जरूरी है। और उसे पार करने के लिए कर्म भी सहयोगी नहीं है, भाव भी सहयोगी नहीं है, ज्ञान भी सहयोगी नहीं है। इस बात को थोड़ा ठीक से समझ लेना जरूरी है, फिर मैं आपके कल के संबंध में कुछ प्रश्र्न हैं, उनकी बात करूं। अखंड सत्य को जानने के लिए भी अखंड ही होना पड़ेगा। 

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