अमोलक



रतन अमोलक परख कर रहा जौहरी थाक।
दरिया तहं कीमत नहीं उनमन भया अवाक।।

दरिया सूत्र दे रहे हैं कि कैसे पहचान होगी! मन थक जाए! परमात्मा को तो नहीं जानते हो लेकिन एक बात जानते हो कि मन कभी नहीं थका। हर चीज पर निर्णय लगा दिया था उसने। हर चीज को नाप लिया था। हर चीज तराजू के पलड़े में आ गई थी। वजन तोल लिया था। मूल्य तोल लिया था। हिसाब-किताब लगा लिया था। जहां मन एकदम हिसाब-किताब न लगा पाए, जहां मन का तराजू बड़ा छोटा पड़ जाए, पूरा आकाश तोलने की बात आ जाए; जहां अचानक मन ठिठक जाए, अवरुद्ध हो जाए मन की सतत प्रक्रिया। जहां विचार एकदम शून्य हो जाएं। तुम सोचना भी चाहो और न सोच सको। सोचना तुम चाहोगे। डरोगे तुम तो। प्रभु द्वार पर खड़ा होगा, सत्य तुम्हें घेरेगा तो तुम बहुत घबड़ा जाओगे। तुम्हारा रोआं-रोआं कांप जाएगा कि यह क्या हो रहा है? इस घड़ी मन धोखा दे रहा है। इस घड़ी में तो मन साथ दे दे। यह घड़ी न चूक जाए। यह अपूर्व घट रहा है और मन कुछ बोलता नहीं। और मन एकदम कहां विलीन हो गया पता नहीं चलता। तुम तो मन को लाना चाहोगे। लेकिन जैसे अंधेरे को प्रकाश के सामने नहीं लाया जा सकता, ऐसे मन को परमात्मा के सामने नहीं लाया जा सकता। मन और परमात्मा साथ-साथ नहीं होते।

यही पहचान है, यही परख है कि पारखी थक जाए। जहां तक पारखी की चलती है वहां तक संसार है। यह तो बड़ी अनूठी परिभाषा हुई। जहां तक मन चलता वहां तक संसार है। मन की गति संसार है। जहां मन अगति में पहुंच जाता वहीं परमात्मा है।

इससे दूसरी बात भी निकलती है कि अगर तुम किसी तरह मन को अगति में पहुंचा दो तो परमात्मा के सामने खड़े हो जाओगे। यह केवल परिभाषा ही नहीं हुई, इससे विधि भी निकल आती है। इसलिए समस्त ध्यान, समस्त भक्ति है क्या? एक ही प्रक्रिया है। कि किसी तरह मन रुक जाए, अवरुद्ध हो जाए। यह मन का सतत पागलपन, यह मन की गंगा जो बहती ही चली जाती है, बहती ही चली जाती है, रुकना जानती ही नहीं, यह एक क्षण को भी ठिठक जाए, ठहर जाए। तो या तो परमात्मा सामने हो तो मन ठिठकता है या मन ठिठक जाए तो परमात्मा सामने आ जाता है। तो इसमें परिभाषा भी हो गई कि कैसे पहचानोगे और इसमें विधि भी आ गई कि कैसे उस तक पहुंचोगे! वहां कीमत ही नहीं। कीमत क्या परमात्मा की? कैसे उसकी कीमत आंको? एक ही है, तो एक ही की कीमत तो नहीं आंकी जा सकती। दो हों तो कीमत आंकी जा सकती है। दो हीरे हों तो तुम कह सकते हो। यह बड़ा, यह छोटा; यह साधारण हीरा, यह कोहिनूर। दो हों तो अंकन हो सकता। तुलना हो सकती है। तो अंकन हो सकता है छोटे-बड़े का। कौन सा हीरा बिलकुल शुद्ध हीरा, और कौन से हीरे में थोड़ी खोट। तो परख हो सकती है। मगर एक ही है तो कोई परख का उपाय नहीं। दरिया तहं कीमत नहीं... फिर कैसे कीमत जानो? फिर कैसे कीमत लगाओ? परमात्मा की कोई कीमत नहीं है इसलिए मन को रुक ही जाना पड़ता है। मन बाजार में खूब चलता है। बाजार में हर चीज की कीमत है। जीवन में जहां भी मन उसके पास आता है जो अमूल्य है, अमोलक है, वहीं मन लड़खड़ाता है। जहां तक कीमत है वहां तक मन ठीक से चलता है। कीमत पर मन का पूरा कब्जा है। इसलिए बाजार में मन जैसा प्रसन्न होता है, वैसा मंदिर में नहीं होता। बैठते हो मंदिर में, मन सोचता बाजार की है। क्यों? आखिर मन का ऐसा बाजार से क्या लेना-देना है? मन की गति बाजार में है। वहां उसे पूरी सुविधा है। हर चीज की कीमत है। हर चीज पर लेबल लगा है। मूल्य का ही बस मूल्य है।आदमी को भी ऐसा आदमी देखेगा तो वह देखता है किसका कितना मूल्य है। यह आदमी प्रधानमंत्री है, यह आदमी चपरासी है, तो दो कौड़ी का। चपरासी को तो देखता ही नहीं। राष्ट्रपति को भर देखता है। राष्ट्रपति भी कल राष्ट्रपति नहीं रह जाएंगे तो यह आदमी नहीं देखेगा। चपरासी कल राष्ट्रपति हो जाएगा तो यह आदमी देखेगा। यह आदमी आदमी को देखता ही नहीं। इसकी आंखों में आदमी की कोई परख ही नहीं इस आदमी को तो सिर्फ कीमत। हर बात में कीमत। इस जिंदगी में भी तुम कई बार ऐसी चीज के करीब आ जाते हो, जिसका मूल्य नहीं होता। लेकिन तब तुम उससे चूक जाते हो। क्योंकि तुम वह तो परख ही नहीं तुम्हारे मन में। अगर तुम किसी संतपुरुष के पास आ जाओ तो तुम नहीं परख पाओगे। क्योंकि वहां तुम्हारा मूल्य-निर्धारक मन गति नहीं करता। तो अभ्यास करो थोड़ा अमोलक को देखने का। यहां भी कोई कीमत नहीं है। जब तुम गुलाब का फूल देखते हो, कहते हो कि चार आने में मिल जाता है बाजार में, तो तुम चूक गए। आदमी एक भी गुलाब का फूल पैदा कर पाया है, जो तुम कीमत आंक रहे हो? चार आने देने से तुम एक गुलाब का फूल पैदा कर पाओगे? चार करोड़ रुपये से भी तुम एक गुलाब का फूल पैदा नहीं कर पाओगे। सारी मनुष्य-जाति की क्षमता लगा कर भी तुम एक गुलाब का फूल पैदा नहीं कर पाओगे। आदमी चांद पर पहुंच गया है, यह एक बात है। अभी घास का एक तिनका भी पैदा नहीं कर पाया है, इसे मत भूल जाना। आदमी ने जो भी सफलता पाई है, सब मुर्दा चीजों पर है। अभी जीवन पर उसकी एक भी सफलता नहीं; होगी भी कभी नहीं। क्योंकि घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होगा। जीवन अमोलक है। 

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