सत्यम शिवम सुंदरम
जीवन बड़ी छोटी-छोटी बातों से बनता है। जीवन बड़ी छोटी-छोटी घटनाओं से बनता है। आप कैसे उठते हैं, कैसे बैठते हैं, कैसे बोलते हैं, क्या बोलते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर होता है। बहुत कुछ निर्भर होता है! और इन सारी बातों का जो केंद्र है, जहां से इन सबका जन्म होता है, वह विचार है।तो विचार को सत्योन्मुख, शिवोन्मुख और सौंदर्योन्मुख होना चाहिए। निरंतर जीवन में यह स्मरण बना रहे कि हम सत्य का चिंतन करें। समय जब मिले, तो हम सत्य पर थोड़ा विचार करें, सौंदर्य पर थोड़ा विचार करें, शुभ पर थोड़ा विचार करें। और इसके पहले कि हम कोई काम करने में प्रवृत्त हों, एक क्षण रुक जाएं और सोचें कि हम जो करेंगे, वह सत्य, सुंदर और शुभ के अनुकूल होगा या प्रतिकूल होगा? जब कोई विचार मन में चलने लगे, तो हम सोचें कि यह जो धारा चल रही है, यह विचार की धारा शुभ के, सत्य के, सुंदर के अनुकूल है या कि प्रतिकूल है? यदि यह प्रतिकूल है, तो इस धारा को खंडित कर दें। इसका साथ छोड़ें, यह धारा लाभ की नहीं है। यह जीवन को गड्ढे में ले जाएगी। यह जीवन को नीचे ले जाएगी। तो इसको स्मरणपूर्वक देखें कि आपकी विचार की पर्तों की धारा कैसी है! और उसे साहस से, प्रयास से और श्रम से और संकल्पपूर्वक शुभ और सत्य की ओर उन्मुख करें। आप जान कर हैरान होंगे, अगर सत्य, शिव या सुंदर में से एक भी केंद्र आपमें जग जाए, तो दो केंद्र अपने आप जगने शुरू हो जाएंगे। और यह भी मैं आपको उल्लेख कर दूं कि तीन तरह के लोग होते हैं जगत में। एक वे लोग होते हैं, जिनके भीतर सत्य के केंद्र के विकसित होने की शीघ्र संभावना होती है। एक वे लोग होते हैं, जिनके भीतर शुभ के केंद्र के विकसित होने की शीघ्र संभावना होती है। और एक वे लोग होते हैं, जिनके भीतर सौंदर्य के विकसित होने की शीघ्र संभावना होती है।
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