झाझेन, आत्म निमज्जन

बीजावधानम्‌। आस्नस्थः सुखं हृदे निमज्जति।

ध्यान बीज है। आसनस्थ अर्थात स्व-स्थित व्यक्ति सहज ही चिदात्म सरोवर में निमज्जित हो जाता है। ध्यान का अर्थ है अपने पर ध्यान, दूसरे पर नहीं। मन का अर्थ है दूसरे पर ध्यान। ध्यान अंतर्मुखता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ध्यान से मोक्ष की खोज वस्तुतः गर्भ की खोज है। जिस दिन यह सारा अस्तित्व तुम्हारे लिए गर्भ जैसा हो जाएगा; तुम इसमें फिर निमज्जित हो जाओगे; तुम्हारा अहंकार विलीन हो जाएगा; न तुम्हारी कोई चिंता होगी, न कोई फिक्र होगी, तब तुम पुनः आत्म आनंद को उपलब्ध होओगे। तुमने मां के शरीर में जो रस थोड़ा सा जाना था गर्भ का, वह तो शरीर में निमज्जित होने का था। जिस दिन तुम आत्मा में निमज्जित होओगे, उस दिन तुम जो रस जानोगे, वही आनंद है। वही परम रस है। उसे हिंदुओं ने ब्रह्म कहा है। उस जैसा कोई स्वाद नहीं। वह सच्चिदानंद है। ‘और आत्म-निर्माण अर्थात द्विजत्व को प्राप्त करता है।’ हम ब्राह्मण को द्विज कहते हैं। अच्छा हो हम द्विज को ब्राह्मण कहें; क्योंकि सभी ब्राह्मण द्विज नहीं हैं, लेकिन सभी द्विज ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण के घर में पैदा होने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। जब तक ब्रह्म से पैदा न हो, तब तक कोई ब्राह्मण नहीं होता; जब तक निमज्जित न हो जाए ब्रह्म में, तब तक कोई ब्राह्मण नहीं होता।

हिंदुओं का एक बहुत अनूठा सिद्धांत है। वे कहते हैं, पैदा तो सभी शूद्र होते हैं, उनमें से कुछ ब्राह्मणत्व को उपलब्ध हो जाते हैं। पैदा सभी शूद्र होते हैं, चाहे कोई ब्राह्मण के घर में पैदा हो और चाहे शूद्र के। जन्म से सभी शूद्र होते हैं। इसलिए ब्राह्मण के बच्चों को हम यज्ञोपवीत करते हैं; वह सिर्फ औपचारिक है। वह इस बात की खबर है कि अब तू शूद्र न रहा, अब ब्राह्मण हुआ। पैदा तो तू शूद्र ही हुआ था, अब तेरे गले में हमने जनेऊ डाल दिया, अब तू ब्राह्मण हुआ। इतना सस्ता नहीं है ब्राह्मण होना कि गले में आपने एक धागा डाल दिया और कोई ब्राह्मण हो गया। ब्राह्मण होना इस जगत में सबसे कठिन प्रक्रिया है; वह आत्म-निमज्जन से घटित होती है। स्वयं को जन्म जो दे देता है, वह द्विज, वह ट्‌वाइस बॉर्न, उसका पुनर्जन्म हुआ। और अब वह स्वयं ही अपना पिता है और स्वयं ही अपनी माता है; अब दूसरे से पैदा नहीं हुआ। अब संसार से उसका संबंध टूट गया। अब ब्रह्म से उसका संबंध जुड़ गया। यह सूत्र कहता है: ध्यान बीज। आसनस्थ जो हुआ, ध्यानस्थ जो हुआ, वह आत्म में निमज्जित हो जाता है। इस निमज्जन से आत्मा का जन्म होता है, द्विजत्व को प्राप्त करता है। सस्ती बातों में मत पड़ना। यज्ञोपवीत को पकड़ कर मत बैठे रहना। काश, इतना सस्ता और आसान होता ब्राह्मण हो जाना! लेकिन हम हमेशा सस्ती तरकीबें निकाल लेते हैं और मन को समझाने की कोशिश करते हैं। कब तक समझाओगे मन को? समझाने से सत्य नहीं मिलेगा। सब झूठी आशाएं छोड़ो। सब जनेऊ, यज्ञोपवीत तोड़ो। उनसे कुछ भी न होगा। असली जन्म चाहिए। इसलिए शिव कहते हैं: ध्यान बीज है। और जब बीज मिटता है, तब तुम द्विजत्व को उपलब्ध होओगे।


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