स्वभाव

स्वभाव का मतलब है जहां ‘स्व’ भी मिट जाता है। इसलिए स्वभाव भी अभागे शब्दों में एक है, क्योंकि उसका मतलब होता है, स्वयं का भाव। लेकिन जहां स्वभाव शुरू होता है, वहां ‘स्व’ मिट जाता है। स्वभाव का स्वयं से कोई भी संबंध नहीं है। स्वभाव का मतलब ही है: जो हमसे होने के पहले था; हमसे होने के बाद होगा; हम हैं तब भी है, हम नहीं हैं तब भी है। अगर मैं बिलकुल भी मिट जाऊं, मेरा ‘मैं’ बिलकुल भी मिट जाए, तब भी जो शेष रह जाएगा वह स्वभाव है। स्वभाव में ‘स्व’ शब्द खतरनाक है। उससे खतरा पैदा होता है, उससे लगता है कि स्वयं का होना। नहीं, स्वभाव का मतलब है, दि नेचर। स्वभाव का मतलब है, प्रकृति। स्वभाव का मतलब है, जो हमारे बिना भी है। जब आप रात सो गए होते हैं, तब ‘स्व’ नहीं होता है, लेकिन स्वभाव होता है। जब गहरी प्रसुप्ति में होते हैं, तब ‘स्व’ नहीं होता, लेकिन स्वभाव होता है। जब एक आदमी मूर्च्छित पड़ा है, गहरी मूर्च्छा में, तब ‘स्व’ नहीं होता, लेकिन स्वभाव होता है। सुषुप्ति और समाधि में इतना ही फर्क है कि सुषुप्ति में मूर्च्छा के कारण ‘स्व’ नहीं होता, समाधि में अमूर्च्छा के कारण, जागरण के कारण, ज्ञान के कारण ‘स्व’ नहीं होता है।  

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