प्रतिक्रमण

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जीवन-सत्य की खोज दो मार्गों से हो सकती है।एक पुरुष का मार्ग है आक्रमण का, हिंसा का, छीन-झपट का। एक स्त्री का मार्ग है--समर्पण का, प्रतिक्रमण का। विज्ञान पुरुष का मार्ग है; विज्ञान आक्रमण है। धर्म स्त्री का मार्ग है; धर्म नमन है। इसलिए पूरब के सभी शास्त्र परमात्मा को नमस्कार से शुरू होते हैं। और वह नमस्कार केवल औपचारिक नहीं है। वह केवल एक परंपरा और रीति नहीं है। वह नमस्कार इंगित है कि मार्ग समर्पण का है, और जो विनम्र हैं, केवल वे ही उपलब्ध हो सकेंगे। और जो आक्रामक हैं, अहंकार से भरे हैं; जो सत्य को भी छीन-झपट करके पाना चाहते हैं; जो सत्य के भी मालिक होने की आकांक्षा रखते हैं; जो परमात्मा के द्वार पर एक सैनिक की भांति पहुंचे हैं--विजय करने, वे हार जाएंगे। वे क्षुद्र को भला छीन-झपट लें, विराट उनका न हो सकेगा। वे व्यर्थ को भला लूट कर घर ले आएं; लेकिन जो सार्थक है, वह उनकी लूट का हिस्सा न बनेगा। इसलिए विज्ञान व्यर्थ को खोज लेता है; सार्थक चूक जाता है। मिट्टी, पत्थर, पदार्थ के संबंध में जानकारी मिल जाती है, लेकिन आत्मा और परमात्मा की जानकारी छूट जाती है। ऐसे ही जैसे तुम राह चलती एक स्त्री पर हमला कर दो, बलात्कार हो जाएगा, स्त्री का शरीर भी तुम कब्जा कर लोगे, लेकिन उसकी आत्मा तुम्हें न मिल सकेगी। उसका प्रेम तुम न पा सकोगे। तो जो लोग आक्रमण की तरह जाते हैं परमात्मा की तरफ, वे बलात्कारी हैं। वे परमात्मा के शरीर पर भला कब्जा कर लें--इस प्रकृति पर जो दिखाई पड़ती है, जो दृश्य है--उसकी चीर-फाड़ कर लें, विश्लेषण कर लें, उसके कुछ राज खोज लें, लेकिन उनकी खोज वैसी ही क्षुद्र होगी, जैसे किसी पुरुष ने किसी स्त्री पर हमला किया हो और बलात्कार किया हो। स्त्री का शरीर तो उपलब्ध हो जाएगा, लेकिन उपलब्धि दो कौड़ी की है; क्योंकि उसकी आत्मा को तुम छू भी न पाओगे। और अगर उसकी आत्मा को न छुआ, तो उसके भीतर जो प्रेम की संभावना थी--वह जो छिपा था बीज प्रेम का--वह कभी अंकुरित न होगा। उसकी प्रेम की वर्षा तुम्हें न मिल सकेगी।

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