तथाकथित
धर्म सदा ही नई चीज है। धर्म कभी पुराना नहीं पड़ता। पड़ ही नहीं सकता। लेकिन हमारी सब मान्यताएं पुरानी पड़ जाती हैं। धर्म तो सदा नया है। लेकिन मान्यताएं सब पुरानी हो जाती हैं। इसलिए जब भी धर्म फिर से जाग्रत होगा, फिर से कभी भी किसी व्यक्ति से प्रकट होगा, तब मान्यताओं वाले सभी व्यक्तियों को अड़चन और कठिनाई होगी। ऐसा एक दफा नहीं होगा, हमेशा होगा। चाहे कृष्ण पैदा हो, तो उस जमाने का जो पुरोहित है, उस जमाने का जो तथाकथित, सो-काल्ड रिलीजियस आदमी है, वह कृष्ण के खिलाफ हो जाएगा। वह इसलिए खिलाफ हो जाएगा कि उसके पास तो पुरानी मान्यताएं हैं और यह आदमी धर्म को फिर नया रूप देगा। यह नया रूप उस अंधे आदमी की पकड़ में नहीं आएगा। उसको यह भी पता नहीं चलेगा कि वह जिसे बचा रहा है, वही अधर्म है। और जिसके खिलाफ लड़ रहा है वह धर्म है, उसे यह पता नहीं चलेगा। उसे तो पता चलेगा कि मैं जो पकड़े हुए था वह ठीक था। और अब कोई आदमी उसे गलत किए दे रहा है। इसलिए यह जो तथाकथित धार्मिक आदमी है, सो-काल्ड रिलीजियस है, यह अधार्मिक से न लड़ेगा कभी भी। यह सदा धार्मिक से ही लड़ेगा। अधार्मिक से इसको कोई डर नहीं मालूम पड़ेगा। लेकिन धार्मिक से इसको डर मालूम पड़ेगा। तो वह चाहे कृष्ण हो; चाहे क्राइस्ट हो; चाहे नानक हो; चाहे कोई भी हो, जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में फिर से धर्म का जागरण होगा, तब फिर धर्म नये रूप में जन्म लेगा। नई भाषा लेगा; नये आकार लेगा; और पुराने आकार जो आदमी पकड़े बैठे हैं जो सिर्फ आकार रह गए हैं, जड़ हो गए हैं, मर गए हैं, उनसे टक्कर शुरू हो जाएगी। तथाकथित धार्मिकता आपको धर्म पता चल जाए। इस बात में बहुत उत्सुक है कि जो पुजारी मौलवी पंडित पादरी कह रहा है, वही धर्म मान लिया जाए। लेकिन जिसको धर्म का पता चल गया है, आप मान लें, इसका जोर उसमें नहीं रह जाएगा। कोई कारण नहीं है। और धर्म कहीं माना जा सकता है किसी के कहने से? सिर्फ जाना ही जा सकता है। धर्म अनुभव से ही जाना जा सकता है।
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