पुरुषार्थ

नानक एक गांव में मेहमान थे। किसी व्यक्ति ने नानक को कहा: मेरे पास बहुत संपत्ति है, और यह संपत्ति मैं चाहता हूं कि दान कर दूं। और यह संपत्ति मैं चाहता हूं धर्म के किसी काम आ जाए। और मैं चाहता हूं आप इसका कोई उपयोग कर लें, मुझे आज्ञा दे दें। नानक ने कहा: सच, तुम्हें आज्ञा दूं, अब तक जितने संपत्तिशाली मुझे मिले हैं, उन सबको मैंने एक ही आज्ञा दी है, वही तुम्हें दूं। लेकिन स्मरण रखो, अब तक कोई उस आज्ञा को पूरा नहीं किया। तुम पूरा करोगे? उस व्यक्ति ने कहा: मैं अपना सब-कुछ लगा दूंगा, ऐसी कौन सी आज्ञा होगी जिस पर मैं सब-कुछ लगाऊं और पूरी न हो सके? और ऐसा क्या है जो न पाया जा सके? मेरे पास बहुत संपत्ति है, मैं सब लगाने को राजी हूं। नानक ने कहा: देखो, प्रयोग करो, संभव है बात बन जाए। और एक कपड़ा सीने की सुई उस आदमी को दी और कहा: इसे सम्हाल कर रखो, जब हम दोनों मर जाएं तो इसे वापस लौटा देना। उस व्यक्ति ने नानक की आंखों में गौर से देखा। मुझे उन्होंने कहा होता मैं भी देखता, आपको कहा होता, आप भी देखते। उसने शायद सोचा होगा, नानक या तो पागल हैं या मजाक करते हैं। मरने के बाद सुई लौटा देना कैसे संभव होगा? सारी संपत्ति भी लगाने पर यह कैसे संभव होगा। लेकिन वहां भीड़ थी और बहुत लोग थे, और उस आदमी ने नानक को कुछ कहना ठीक न समझा। वह घर गया, उसने बहुत सोचा। उसने अपने मित्रों को पूछा, जिन्हें वह विचारशील समझता था, उनके पास गया और उनसे कहा: कोई रास्ता हो सकता है क्या? मैं अपनी सारी संपत्ति लगाने को तैयार हूं। क्या इस छोटी सी सुई को मैं मृत्यु के पार ले जाने में समर्थ हो जाऊंगा? लोगों ने कहा: पागल हो, आज तक मृत्यु के पार कुछ भी नहीं गया। वह खाई अलंघ्य है। उस खाई के पार ले जाना कुछ भी संभव नहीं है। और तुम्हारी कितनी ही संपत्ति हो, और तुम्हारी कितनी ही शक्ति हो, और तुम्हारी कितनी ही समृद्धि हो, वह कोई भी समर्थ न होगी कि यह सुई उस पार चली जाए। यह सुई वापस कर दो, यह ऋण मृत्यु के बाद नहीं चुकाया जा सकेगा। वह आदमी सुबह, जब कि अभी अंधेरा था, नानक के पास गया और उसने कहा: यह सुई अपनी वापस ले लें, कहीं ऐसा न हो कि हम मर जाएं और यह उधारी हम पर रह जाए, यह ऋण ऊपर रह जाए। मरने के बाद हम इसे न चुका सकेंगे। नानक ने कहा: तुम्हारी संपत्ति का क्या हुआ? और तुम्हारी शक्ति का क्या हुआ? और तुम्हारे उस दर्प का और अहंकार का क्या हुआ? इतना छोटा काम कि एक सुई, जिससे छोटी और कोई चीज नहीं है, वह भी मृत्यु के पार ले जा नहीं सकोगे? तो उस व्यक्ति ने कहा: माफ करें, क्षमा करें। इस सुई ने मुझे बहुुत दरिद्र बना दिया है। इस सुई ने मुझे बहुत दरिद्र बना दिया है। और मुझे पहली दफा पता चला: हमारी कोई शक्ति नहीं, हमारी कोई संपत्ति नहीं, हमारा कोई सामर्थ्य नहीं। एक सुई को हम मृत्यु के पार न ले जा सकेंगे।

नानक ने कहा: और कुछ है तुम्हारे पास जिसे तुम पार ले जा सकोगे? उसने कहा: इस सुई ने सब दिखा दिया, कुछ भी मेरे पास नहीं है। तो नानक ने उस व्यक्ति को कहा था: तुम जो कमाते रहे, वह संपत्ति नहीं हो सकती। जो मृत्यु में साथ न आए, वह संपत्ति कैसे होगी? जो विपत्ति में साथ न आए, वह संपत्ति कैसे होगी? जो विपत्ति में साथ न आए, वह संपत्ति कैसे होगी? और विपत्ति क्या है जगत में? सिवाय मृत्यु के और कोई विपत्ति नहीं है। बाकी सब सूचनाएं हैं। बाकी विपत्तियां नहीं हैं। बाकी सब टल जाती हैं, जो नहीं टल पाती वह अकेली मृत्यु है। बाकी सबसे हम जूझ लेते हैं, जिससे नहीं जूझ पाते वह मृत्यु है। इसलिए बाकी को विपत्ति न कहें, विपत्ति केवल मृत्यु है और जो मृत्यु में काम आ जाए, संपत्ति है। पर हम जो कमाते हैं, वह मृत्यु में काम नहीं आएगा। इसलिए नासमझ हैं जो उसे संपत्ति समझते होंगे। पर कुछ ऐसा भी कमाना संभव है जो मृत्यु में काम आ जाता है। और ऐसी भी संपदा है जो मृत्यु के पीछे पार हो जाती है। और ऐसी भी शक्ति है जिसे मृत्यु की लपटें नहीं जला पाती हैं। धर्म का संबंध उसी शक्ति से, उसी संपत्ति से है। और वह संपत्ति उस व्यक्ति को उपलब्ध होती है जो जीवन को साधता है। जो धन को साधता है, जो यश को साधता है, उसे उपलब्ध नहीं होती।

मृत्यु के पार होने की सामर्थ्य उसे उपलब्ध होती है जो जीवन को साधता है। क्योंकि जीवन की सिद्धि पर अमृत उपलब्ध होता है। जो जीवन को साधेगा, उसे अमृत उपलब्ध होगा। क्योंकि जीवन की अंतिम परिणति अमृत है। और जो जीवन को नहीं साधेगा, उसे मृत्यु ही केवल उपलब्ध हो सकती है। 

क्योंकि जीवन को न साधने का और परिणाम क्या होगा? जीवन को न साधने का अर्थ अगर ठीक से समझें, तो मृत्यु को साधना है। जो धर्म को नहीं साध रहा है, वह केवल मृत्यु को साध रहा है। यह स्मरणपूर्वक दृष्टि में बैठ जाए, यह बात बहुत स्पष्ट दिख जानी चाहिए कि जो धर्म को नहीं साध रहा है, वह मृत्यु को साध रहा है। वह साधे या न साधे मृत्यु के सिवाय उसके हाथ में अंत में कुछ भी आने को नहीं है। जीवन के सामने एक ही प्रश्न है। और वह मृत्यु है। और कोई प्रश्न नहीं है। जीवन के सामने एक ही ज्वलंत प्रश्न है, वह मृत्यु है। वह यह है। जिन प्रश्नों को हम प्रश्न मान कर चलते हैं और जिनको हम जीवन भर सुलझाने की चेष्टा करते हैं, वे वास्तविक प्रश्न नहीं हैं। वे ऐसी समस्याएं नहीं हैं जिनका समाधान न हो। जिनके हम सब समाधान खोज लेते हैं। लेकिन एक प्रश्न ऐसा है जिसका कोई समाधान नहीं मिलता। और उस समाधान के लिए जो साहस करता है, वही केवल ठीक अर्थों में, ठीक अर्थों में मनुष्य है। जो उस चरम समस्या को सुलझाने के लिए, उस चरम समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत होता है, वही केवल पुरुषार्थ को, वही केवल साहस को, वही केवल अपने मनुष्य होने की घोषणा करता है। शेष कुछ भी पुरुषार्थ नहीं है। 

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