निःशब्द

सत्य की खोज का अर्थ है: शांति के आयाम में प्रवेश। इन द डाइमेंशन ऑफ साइलेंस। एक शब्द का आयाम है जिसमें हम जीते हैं। हम प्रेम करते हैं तो शब्दों का उपयोग करना पड़ता है। हम क्रोध करते हैं तो शब्दों का उपयोग करना पड़ता है। मित्र से मिलते हैं तो शब्दों का उपयोग करना पड़ता है। शत्रु से मिलते हैं तो शब्दों का उपयोग करना पड़ता है। जागते हैं तो शब्दों का उपयोग करते हैं, सोते हैं तो सपने में शब्दों का उपयोग करते हैं। हम एक डाइमेंशन में जीते हैं जो शब्द का डाइमेन्शन है। सत्य उस डाइमेन्शन पर कहीं भी न मिलेगा। उस डाइमेन्शन पर शास्त्र मिलेंगे, जो शब्दों का संग्रह है। सिद्धांत मिलेंगे, जो शब्दों के कंस्ट्रक्शन हैं। गुरु मिलेंगे, जो शब्दों के दुकानदार हैं। दावेदार मिलेंगे, जो शब्दों के कुशल प्रयोगकर्ता हैं। लेकिन उस डाइमेंशन में, शब्द के डाइमेन्शन में...सार्त्र ने अपनी आत्म-कथा लिखी तो उसको नाम दिया वर्डस, शब्द। हम भी अपनी आत्म-कथा लिखें तो शब्दों से ज्यादा क्या है। लेकिन शब्दों की आत्म-कथा में सत्य कहीं भी नहीं होगा। एक और भी आत्म-कथा है और वह है शांति की, शून्य, साइलेंस की, निशब्द की, जहां सब शब्द खो गए। अगर सत्य की खोज पर निकलना है तो इस शून्य की और शांति के डाइमेन्शन को खोजना। अनायास एफर्टलेसली कभी आकाश को देखते हैं हो जाएं चुप। कभी किसी वृक्ष के तने से टिके बैठे हैं हो जाएं चुप। कभी अपनी पत्नी की आंख में झांकते हैं हो जाएं चुप। कभी अपने बेटे को गले लगाया है हो जाएं चुप। कभी अनायास, चौबीस घंटे में किसी क्षण हो जाएं चुप। शब्द को छोड़ें और निःशब्द में ठहर जाएं। सत्य दूर नहीं है बहुत पास है। लेकिन सिर्फ उनको जो निःशब्द में ठहरने की कला सीख लेते हैं। और जो जानेंगे उस मौन में उसे न तो आप कह सकेंगे न मैं कह सकता हूं न कोई और कह सका है। जो जानेंगे उस मौन में वह गूंगे का गुड़ हो जाता है। जान तो लेते हैं स्वभावतः क्योंकि जिसे शब्द को छोड़ कर जाना है उसे शब्द में कैसे कहा जा सकेगा। जिसे शब्द को मार कर जाना उसे शब्द में कैसे कहा जा सकेगा। जिसे शब्द से विपरीत जाकर जाना उसे शब्द में कैसे लाया जा सकेगा। इसलिए आज तक कोई नहीं कह सका कि सत्य क्या है! सत्य कैसे मिल सकता है इसकी तो चर्चा हुई है बहुत लेकिन सत्य क्या है? वहां सब चुप हो गए हैं। अब जैसे उदाहरण के लिए: सदियों से आदमी मानता रहा है कि सुबह सूरज ऊगता है और सांझ डूबता है। अब वैज्ञानिक ने खोज कर बात रख दी कि सूरज न डूबता है, न ऊगता है। लेकिन फिर भी भाषा नहीं बदलती--सूर्यास्त, सूर्योदय चलता है। चलेगा। दिखता नहीं, कि कभी रुकेगा यह। यही शब्दातीत है, निःशब्द है ।

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