छलांग
प्रभु के द्वार में प्रवेश इतना कठिन नहीं है, जितना मालूम पड़ता है। सभी चीजें कठिन मालूम पड़ती हैं, जो न की गई हों। अपरिचित, अनजान कठिन मालूम पड़ता है। जिससे हम अब तक कभी संबंधित नहीं हुए हैं, उससे कैसे संबंध बनेगा, यह कल्पना में भी नहीं आता। जो तैरना नहीं जानता है, वह दूसरे को पानी में तैरता देख कर चकित होता है। सोचता है बहुत कठिन है बात। जीवन-मरण का सवाल मालूम पड़ता है। लेकिन तैरने से सरल और क्या हो सकता है! वस्तुतः तैरना कोई कला नहीं, सिर्फ पानी में गिरने के साहस का फल है। तैरना कोई कला नहीं है। पहली बार आदमी गिरता है तो भी हाथ-पैर तड़फड़ाता है, थोड़े अव्यवस्थित होते हैं। दो-चार दिन के बाद थोड़ी व्यवस्था आ जाती है। उसी को हम तैरना कहने लगते हैं। और जब तैरना आपको आ जाता है, तब आप भलीभांति जानते हैं कि यह भी कोई सीखने जैसी बात थी! इसीलिए तैरने को कोई कभी भूल नहीं सकता। जो भी चीज सीखी जाती है, वह भूली जा सकती है। लेकिन तैरने को कोई भूल नहीं सकता। असल में, उसे हम सीखते नहीं, जानते ही हैं। सिर्फ साहस हो तो उसका उदघाटन हो जाता है। जो भी चीज सीखी जाती है, दैट व्हिच इज़ लर्न्ड, कैन बी अनलर्न्ड। लेकिन तैरना एक ऐसी चीज है कि एक बार जान लेने के बाद आप पचास साल तक न तैरें और फिर आपको पानी में कोई फेंक दें, आप तैरने लगेंगे। उसे आप भूल नहीं सकते। उसे भूलने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन अगर सीखा होता तो भूला जा सकता था। सीखा ही नहीं है, हाथ-पैर तड़फड़ाना सभी को मालूम है। थोड़ी हिम्मत हो और पानी में कूद जाना हो जाए, तो हाथ-पैर तड़फड़ाना आ जाता है। फिर दो-चार दिन हिम्मत बढ़ती जाती है, मरने का डर कम होता जाता है, और आदमी व्यवस्थित हो जाता है। ठीक ध्यान भी ऐसी ही चीज है। जब तक आपको पता नहीं, तब तक लगता है बड़ा कठिन है। सीखने का भी कुछ नहीं है, सिर्फ साहस की ही जरूरत है और कूद जाने की बात है। थोड़ा हाथ-पैर तड़फड़ाएंगे, दो-चार दिन में व्यवस्थित हो जाता है। और जब व्यवस्थित हो जाता है तो दुबारा आप भूल नहीं सकते। और एक बार आ जाए तो फिर हैरानी होती है कि इतनी सरल बात और इतने जन्मों तक क्यों न आ सकी?ठीक ध्यान भी ऐसी ही चीज है। जब तक आपको पता नहीं, तब तक लगता है बड़ा कठिन है। सीखने का भी कुछ नहीं है, सिर्फ साहस की ही जरूरत है और कूद जाने की बात है। थोड़ा हाथ-पैर तड़फड़ाएंगे, दो-चार दिन में व्यवस्थित हो जाता है। और जब व्यवस्थित हो जाता है तो दुबारा आप भूल नहीं सकते। और एक बार आ जाए तो फिर हैरानी होती है कि इतनी सरल बात। तैरना भी सीखना हो तो पानी में कदम रखना जरूरी है। इसलिए कोई कहता हो कि पहले तैरना सीख लेंगे, फिर पानी में कदम रखेंगे। तर्कयुक्त मालूम पड़ती है बात कि जब तैरना नहीं आता तो पानी से बचना चाहिए। और पानी में कदम नहीं रखना भूल कर, जब तक तैरना न आ जाए। लेकिन तैरना सीखने के लिए भी पानी में ही उतरना पड़ता है। इसलिए ध्यान रखें, जिसे तैरना नहीं आता, उसे भी पानी में उतरना ही पड़ेगा, ताकि तैरना आ जाए। और अगर आपने नियम बना लिया कि पहले तैरना सीख लेंगे, फिर पानी में उतरेंगे, तो आप कभी न तैरना सीख पाएंगे और न कभी पानी में उतर पाएंगे। एक मित्र कल आए थे, वे कहते थे कि पहले मैं संन्यास का अभ्यास करूंगा। फिर बाद में संन्यास ले लेंगे। संन्यास का कैसे अभ्यास करिएगा बिना संन्यास लिए? नदी की रेत में तैरना सीखिएगा? अभ्यास के पहले भी छलांग लेनी पड़ती है, तो ही अभ्यास हो सकता है। और कहीं न कहीं तो छलांग लेनी ही पड़ती है। छलांग का अर्थ आपको कह दूं। छलांग का अर्थ होता है कि आपके मन की जो कंटिन्युटी है, जो सातत्य है अब तक का, अगर उसमें ही जुड़ने वाली किसी कड़ी को आप बनाते हैं, तो वह छलांग नहीं है। दैट इज़ सिंपली ए कंटिन्युटी ऑफ दि ओल्ड। वह जो पुराना मन है, दस तक आ गया था, आप ग्यारहवां और जोड़ देते हैं कदम। वह उसी का सिलसिला है, उसमें छलांग नहीं है। लेकिन एक आदमी का जो मन है आज तक का, उस मन के जो तर्क हैं, उस मन की जो व्यवस्था है, उस सबको तोड़ कर आदमी एक ऐसा कदम उठाता है, जो उसका मन राजी भी नहीं होता था। जो उसका मन कहता था, बिलकुल गलत है! जो उसका मन कहता था, कैसे अंधेरे में कूद रहे हो, अनजान में कूद रहे हो, मेरी सुनो। जिस कदम के प्रति उसका मन सब तरह की बाधाएं डाल रहा था, उस कदम को उठा लेने का नाम छलांग है। छलांग का अर्थ है: डिसकंटिन्युअस, आपके पुराने मन से उसका कोई सातत्य, श्रृंखला नहीं है।ध्यान एक छलांग है। और ये छलांग सीधी परमात्मा के द्वार पर ले जाती है।
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