जिंदादिली

 

तलखियां जैसे फिजाओं में घुली जाती हैं,
जुलमतें हैं कि उमड़ती ही चली आती हैं,
आशियानों के करीं बिजलियां लहराती हैं,
जिंदगी एक अटल कोहे-गिरां है लेकिन,
जिससे बेदाद के शैतान भी टकराते हैं,
आग और खून के तूफान भी टकराते हैं,
मुंह की खाते हैं, पछड़ जाते हैं, जक पाते हैं,
बागे-आलम पे हुए कितने खिजां के यलगार
जिंदगानी पे कई मौत ने छापे मारे।
कभी यूनां से कभी रोम से तूफान उठे,
वादी-ए-नील से उबला कभी खूनी सैलाब,
आग भड़की कभी आतिशकदे-फारस से
जिंदगी शोलों में तप-तप के निखरती ही गई,
जितनी ताराज हुई, और संवरती ही गई।

जिंदगी निखरती ही रही है, सारी आगें जलती रही हैं, शोले बरसते रहे हैं। जिंदगी शोलों में तप-तप के निखरती ही गई, जितनी ताराज हुई, और संवरती ही गई। जितनी ध्वस्त हुई, उतनी और संवरती ही गई। मैं निराशावादी नहीं हूं। अतीत की व्यर्थता की अगर मैं तुमसे बात कहता हूं तो सिर्फ इसीलिए ताकि तुम उसके ऊपर उठ सको, ताकि तुम उसमें दबे न रह जाओ। जिंदगी शोलों में तप-तप के निखरती ही गई, जितनी ताराज हुई, और संवरती ही गई। मैं तो देखता हूं एक नया सूरज, एक नई सुबह, एक नया मनुष्य, एक नई पृथ्वी--वह रोज निखरती आ रही है। अगर हम थोड़े सजग हो जाएं तो यह और जल्दी हो जाए, यह रात जल्दी कट जाए, यह प्रभात जल्दी हो जाए। ध्यान के दीयों को जलाओ और प्रेम के गीतों को गाओ। प्रेम के गीत और ध्यान के दीये, जो सुबह आज तक आदमी के जीवन में नहीं हुई, उसे पैदा कर सकते हैं। और आदमी बहुत तड़प लिया है, नरक में बहुत जी लिया है। समय है कि अब हम स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार लें। स्वर्ग उतर सकता है।

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