खामोशी
इस जगत में जो भी महत्वपूर्ण है वह खुद-ब-खुद आता है। इस जगत में जो व्यर्थ है वही सीखना पड़ता है। विश्वविद्यालय व्यर्थ को ही सिखाते हैं। सार्थक को सिखाने की कोई जरूरत ही नहीं है। गणित सिखाए बिना नहीं आता। प्रेम बिना सिखाए आता है। तर्क बिना सिखाए नहीं आता, श्रद्धा बिना सिखाए उतरती है। ज्ञान बिना सिखाए नहीं आता। भक्ति कब अनायास, किस दिशा से आ जाती है कोई भी नहीं जानता। कब बाढ़ की तरह आती है और तुम्हें बहा ले जाती है, कोई भी नहीं जानता। इस जीवन में जो महत्वपूर्ण है वह अनसीखा है। महत्वपूर्ण की तलाश हो तो इस अनसीखेपन के तत्व को समझ लेना। बच्चा पैदा होता है, श्वास लेना कौन सिखाता है? इसके पहले कभी ली न थी। मां के पेट में बच्चा स्वयं श्वास नहीं लेता। मां की श्वास से ही काम चलाता है। पैदा होने के बाद, जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घड़ी होती है वे दो-तीन क्षण, जब बच्चे की श्वास नहीं होती। मां के गर्भ से बाहर आ गया है और अभी अपनी श्वास ली नहीं। कौन सिखाता है श्वास लेना? और उस श्वास के बिना कोई जीवन नहीं होगा। कभी कोई जीवन नहीं होगा। कहां से आती है श्वास? कैसे भर जाते हैं नासापुट जीवन से? कौन फूंक जाता है? सोचते हो इन जीवन के रहस्यों पर? सिखाया किसी ने भी नहीं। बच्चे ने इसके पहले कभी श्वास ली भी नहीं थी। पुराना कोई अनुभव भी नहीं है। मगर फिर भी घटना घटती है। मां-बाप, चिकित्सक, नर्सें अवाक रह जाते हैं क्षण भर को। यह बच्चा चीखेगा, रोएगा, चिल्लाएगा या नहीं? वह चिल्लाना, रोना-चीखना, सिर्फ श्वास लेने का सबूत है। वह श्वास लेने का पहला उपाय है। वह बच्चे का रो उठना श्वास लेने का पहला उपाय है।
ऐसे ही जिस दिन तुम परमात्मा के लिए रो उठोगे, वह परमात्मा को पाने का पहला उपाय है। मगर तुम्हारे किए करने की कोई बात नहीं है। तुम क्या करोगे? बच्चा श्वास ले लेता है, जीवन की यात्रा शुरू हो गई। सबसे महत्वपूर्ण कदम उठा लिया। इससे महत्वपूर्ण कदम अब जिंदगी में दूसरा नहीं होगा। और यह बिना सीखे उठाया। न कहीं स्कूल जाना पड़ा, न किसी से प्रशिक्षण लेना पड़ा। यह अपने से हुआ। यह स्वयंभू है। या कहो परमात्मा से हुआ। परमात्मा का और कुछ अर्थ नहीं होता, जो अपने से हो रहा है उसका नाम परमात्मा है। जो तुम करते हो उसका नाम आदमी है। जो अपने से होता है वही परमात्मा।
न सोचा न समझा न सीखा न जाना मुझे आ गया खुद-ब-खुद दिल लगाना जरा देख कर अपना जलवा दिखाना सिमट कर यहीं आ न जाए जमाना जबां पर लगी हैं वफाओं की मुहरें खामोशी मेरी कह रही है फसाना
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