रिक्तता
मुल्ला नसरुद्दीन एक स्त्री के प्रेम में पड़ा। और तो सब ठीक था, आंख उसकी कमजोर थी। तो अपने आंख के डॉक्टर को उसने कहा कि क्या करूं, कहीं यह आंखों की वजह से, और यह चश्मा भारी नंबर का--कहीं वह स्त्री इसी वजह से गड़बड़ा न जाए। क्योंकि मैं तो उसको भी ठीक से देख नहीं पाता। ऐसा टटोलता हूं, तब पता चलता है कहां सिर, कहां हाथ। यह तो बड़ी...अगर बिना चश्मा के देखूं तो कुछ समझ में नहीं आता कि कौन-कौन है। और चश्मे की वजह से कहीं बाधा न आ जाए? कहीं वह स्त्री यह न सोचे कि तुम बिलकुल नीम अंधे, आधे अंधे हो, तुमसे क्या शादी करनी! कुछ उपाय है? तो डॉक्टर ने कहा: तू एक काम कर। दिखावा कर कि तुझे दिखाई पड़ता है। कोई भी ऐसा काम कर, जिससे उसको समझ आ जाए कि तुझे दूर का दिखाई पड़ता है। तो जैसी कहावत है: ‘अंधे को बड़ी दूर की सूझी।’ नसरुद्दीन ने सोचा। सांझ बैठा है, उसने क्या किया, एक सुई--कपड़ा सीने की सुई--एक वृक्ष में खोंस आया, बड़ी से बड़ी आंख वाले को भी न दिखाई पड़े। कोई सौ कदम दूर बैठे, रात चांदनी। और उसने कहा कि अरे! यह वृक्ष में एक सुई मालूम पड़ती है। जरा लड़की भी थोड़ी हैरान हुई। शक तो इसकी आंख पर उसे था। लेकिन इसको, और सुई दिखाई पड़ती है! और उसको दिखाई ही नहीं पड़ रही--वृक्ष मुश्किल से दिखाई पड़ रहा है। और उसमें इसको--एक सुई खपी है, कोई सुई लगा गया है--वह दिखाई पड़ रही है। तो उसने कहा: मुझे तो दिखाई नहीं पड़ती, नसरुद्दीन! नसरुद्दीन ने कहा: मैं अभी निकाल लाता हूं। वे उठे, और धड़ाम से गिरे, क्योंकि सामने एक भैंस खड़ी थी। भैंस उन्हें दिखाई न पड़ी। दिखावा ज्यादा देर नहीं चल सकता। कितनी देर चलेगा? दिखावा जल्दी ही पकड़ में आ जाता है। यद्यपि लोग चाहे न कहें, क्योंकि वह भी अभद्र मालूम पड़ता है कि कोई तुमसे कहे कि यह दिखावा है। और अभद्र इसलिए भी पड़ता है कि वे भी तो यही कर रहे हैं। इसलिए सांठ-सांठ है, एक षडयंत्र है सामूहिक, पारस्परिक लेन-देन है। हमारा दिखावा तुम नहीं मिटाते, तुम्हारा दिखावा हम नहीं मिटाते, ऐसे संसार चलता है। तुम दिखाने की कोशिश कर रहे हो कि बड़े ज्ञानी हैं, और हम दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि बड़े त्यागी हैं। दोनों को एक-दूसरे का खयाल रखना पड़ता है। अगर तुमने गड़बड़ की, तो हम भी गड़बड़ कर सकते हैं। इसलिए संसार में ऐसा चलता है। लेकिन सभी को पता है कि दिखावा दिखावा है। दिखा-दिखा कर तुम किसी को धोखा नहीं दे पाते। और दूसरी बात जो तुम समझ लो, वह यह कि जो अपने भीतर छिपा लेता है, वह छिपाए छिपती नहीं। अपनी तरफ से छिपाता है, लेकिन बात प्रकट हो जाती है। वह ऐसे ही जैसे कोई स्त्री गर्भवती हो जाए। छिपाओगे? चाल बदल जाती है, चेहरे का ढंग बदल जाता है, आंखों का भाव बदल जाता है। साधारण स्त्री साधारण स्त्री है। मां, गर्भवती, बात और है! एक क्रांति घट गई। एक नये जीवन का आविर्भाव हुआ है भीतर। वह गरिमा सम्हाले नहीं सम्हलती। इसलिए गर्भवती स्त्री में जैसा सौंदर्य प्रकट होता है, वैसा किसी स्त्री में कभी प्रकट नहीं होता। क्योंकि अब एक आत्मा नहीं, दो आत्माएं एक ही शरीर से झलकती हैं। एक ही घर में जैसे दो दीये जलते हैं तो प्रकाश सघन हो जाता है। छिपा न सकोगे। जब तुम्हारे भीतर पारस होगा और परमात्मा को तुम अपने गर्भ में लेकर चलोगे--कहां छिपाओगे? साधारण सा बच्चा नहीं छिपता। सहजो तो यह कह रही है कि तुम छिपाना। तुम छिपा न सकोगे, यह मैं तुमसे कहता हूं। कोई कभी नहीं छिपा पाया। अंधों को दिखाई पड़ने लगेगा, बहरों को सुनाई पड़ने लगेगा तुम्हारे भीतर का परमात्मा। जिन्हें किसी तरह की गंध नहीं आती, उनके नासापुट तुम्हारे भीतर के परमात्मा की गंध से भर जाएंगे। परमात्मा बड़ी उजागर घटना है। हां, जो छिपाता है उसका उजागर हो जाता है। और जो उसे उजागर करना चाहता है, उसके पास तो है ही नहीं। इसलिए जल्दी ही पता चल जाता है कि दिखावा था। तुम इसे परमात्मा पर ही छोड़ देना। तुम अपनी तरफ से छिपाना, वह ही प्रकट हो तो तुम क्या करोगे? वह प्रकट होता है। नहीं तो बुद्ध कैसे प्रकट हों? नहीं तो सहजो कैसे गाए? नहीं तो फरीद कैसे पहचाना जाए? असंभव है। इस जगत में जब भी परमात्मा की घटना घटी है, तो जिनको घटी है उन्होंने लाख उपाय किए छिपाने के, और उनके सब उपाय असफल हुए। वह परमात्मा ही हे यह तो पता चला ही है। और जिनको नहीं मिला, उन्होंने लाख उपाय किए बतलाने के, कभी कुछ हुआ नहीं। उनके बताने से सिर्फ उनकी मूढ़ता ही पता चली। उनके बताने से सिर्फ उनका धोखा ही प्रकट हुआ है। उनके बताने से केवल उनके भीतर की रिक्तता का ही लोगों को अनुभव हुआ है।
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