शालिग्राम
एक हवा ताजी, है छू गई चुपके-चुपके,
एक और पात झरा -- आहिस्ते-आहिस्ते।
कब तक ले घूमेंगे, शिव सा संबंधों का शव,
गल-गल गिर जाने दें, कुछ टूटे बोझिल रिश्ते।
क्या अजब कुछ दिल टूटे, इस हयाते-फानी में,
हम न थे आसमां के, कुछ वे न थे फरिश्ते।
चुभे हैं खार, जब भी महके हैं यादों के गुलाब,
जख्म नासूर हुए हैं, कुछ यूं रिसते-रिसते।
कब तक ले घूमेंगे, शिव सा संबंधों का शव,
गल-गल गिर जाने दें, कुछ टूटे बोझिल रिश्ते।
क्यूं करें जख्मों का शिकवा और चोटों का गिला,
कुछ संगे-दिल शालिग्राम हुए हैं घिसते-घिसते।
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