सनातन सरलता

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धर्म ही सरल है। और धर्म मेरा-तेरा थोड़े ही होता है। मेरा धर्म यानी क्या? मेरा प्रकाश यानी क्या? मेरी सुगंध यानी क्या? यह तो वही शाश्वत सुगंध है--सनातन। एस धम्मो सनंतनो! सदा-सदा से जिन्होंने जाना है, यही कहा है। भाषा अलग, मगर भाव अलग नहीं। शब्द अलग, मगर शब्दों का सार अलग नहीं। यही गीत गाया है--किसी ने वीणा पर गाया होगा और किसी ने बांसुरी से, किसी ने मृदंग बजाई होगी और किसी ने इकतारा। वाद्य अलग-अलग, राग नहीं है अलग--सरगम वही है। मेरा धर्म, ऐसी कोई बात नहीं होती। मेरा-तेरा को धर्म तक खींच लाओगे? धर्म को तो बचने दो! मेरी दुकान ठीक, मेरा मकान ठीक, मेरा धन, मेरी पत्नी, मेरा पति--वहां तक मेरा सार्थक है। मगर कहीं तो एक सीमा आने दो मेरे की, जहां से मेरा और मैं दोनों विदा हो जाएं। उनको अलविदा कहो। कोई जगह तो हो जहां उन्हें छोड़ दो और तुम आगे बढ़ जाओ। जैसे सांप अपनी पुरानी केंचुल को छोड़ कर सरक जाता है, ऐसे कोई स्थल तो होना चाहिए जहां तुम मैं और तेरा और मेरा, इसकी केंचुल से बाहर सरक जाओ। यह स्थल मैं--मेरे से मुक्त होने के लिए है। और वही तो तीर्थ है जहां तुम मैं और मेरे से मुक्त हो जाओ। वही तो धर्म है। धर्म स्वभाव है, इसलिए किसी का नहीं हो सकता, किसी की बपौती नहीं हो सकती न हिंदू का, न मुसलमान का, न ईसाई का, न जैन का, न सिक्ख का, न पारसी का। मगर हम ऐसे मूढ़ हैं, हम ऐसे अज्ञानी कि जहां मेरा मिट जाना चाहिए वहां भी मेरे के डंडे और मेरे के झंडे उठाए खड़े रहते हैं। इतना ही नहीं, तलवारें चलती हैं, खून खराबा होता है, मंदिर-मस्जिद जलते हैं। धर्म के नाम पर इतना पाप हुआ है जितना किसी और नाम पर नहीं। वह धर्म के कारण नहीं हुआ, मेरे तेरे के कारण हुआ है। 

'में और मेरा' एक तरह का अहंकार, एक आदत है--सदियों-सदियों पुरानी, वह सुक्ष्म अहंकार है जो जन्मों-जन्मों पुरानी। इसलिए मैं हर चीज पर बैठ जाता है। वह तुम्हारी धुन हो गई, अचेतन हो गई प्रक्रिया मेरा धर्म, मेरा मंदिर, मेरा शास्त्र। नहीं तो कुरान किसी के बाप की है, कि वेद, कि उपनिषद? कम से कम इन्हें तो तुम छोड़ो बपौतियों से! कम से कम मोहम्मद और महावीर के तो ठेकेदार न बनो! कम से कम इन्हें तो क्षमा करो, इन्हें तो मत घसीटो अपनी क्षुद्रताओं में। मगर नहीं, हम तो हर चीज को अपने तल पर खींच लाते हैं, अपनी कीचड़ में गिरा लेते हैं। धर्म तो धर्म है। धर्म का अर्थ है स्वभाव। जिस दिन तुम जाग कर अपने को पहचान लेते हो, उसी दिन धर्म घटता है। हिंदू घर मे पैदा होने से हिंदू नहीं होते, ईसाई घर में पैदा होने से ईसाई नहीं होते, न हो सकते हो। ये धोखे हैं। जन्म से धर्म का कोई संबंध नहीं है। जन्म से और धर्म मिल जाता तो बड़ी सस्ती बात होती--मुफ्त ही मिल जाता, पैदाइश के साथ ही मिल जाता। धर्म तलाशना होता है, खोजना होता है, अन्वेषण करना होता है; अंतरात्मा में गहरी डुबकी मारनी होती है। जब तुम अपने जीवन के केंद्र को अनुभव कर लेते हो, जब तुम अपने भीतर जीवन के मूल को पकड़ लेते हो, तब तुम्हें पता चलता है कि धर्म क्या है। और तभी तुम जान पाओगे कि धर्म सरल है; क्योंकि स्वभाव है, इसलिए सरल ही हो सकता है। विभाव कठिन होता है। स्वभाव कैसे कठिन होगा? गुलाब खिला है। तुम कहोगे गुलाब की झाड़ी से कि बड़ी कठिनाई होती होगी ऐसे सुंदर गुलाब खिलाने में! और कांटों के बीच कैसे यह गुलाब खिला पाती है झाड़ी! कितनी कठिनाइयों से न गुजरती होगी! कोई कठिनाई नहीं होती। गुलाब की झाड़ी में फूल वैसे ही खिलते हैं--सहजता से। जैसे आग जलाती है, ऐसे गुलाब की झाड़ी में फूल लगते हैं। जैसे आग की लपटें ऊपर की तरफ जाती हैं और पानी की धार नीचे की तरफ जाती है सहज स्वाभाविक वैसा ही धर्म सरल है।  

चरण पर चढ़ क र जला ले,
भक्ति की तू आरती।
प्रार्थना के गीत झरने दे,
हृदय से भारती।

प्रेम के ये फूल सारे,
भेंट कर दे चरण पर।
रात भर जलती रहो,
बन तू पिया की आरती।

पलकों में ही काट लूंगी,
रात पिय के प्यार की।
आज मधुबन में रचेगी,
राम कृष्णा भारती!

तुम हृदय में बीन छेड़ो,
झूम कर गाऊं पिया!
प्राण में पीयूष भर दो,
झूम कर पीयूं पिया!

भर दिए हैं। गीत उठा है!
तुम हृदय में बीन छेड़ो,
झूम कर गाऊं पिया!
प्राण में पीयूष भर दो,
झूम कर पीयूं पिया!

आज मंदिर में तुम्हारी
मैं स्वयं प्रतिमा बनूंगी।
प्रेम के दीपक जला कर,
आरती तेरी करूंगी।

तुम हृदय के देवता हो,
प्राण के श्रृंगार हो तुम।
अश्रु चरणों पर चढ़ा कर,
नमन मैं तेरा करूंगी।

तुम मिलो तो जिंदगी
छक कर नहाए, गीत गाए।
प्यार के माणिक, पिया!
अनुराग उर के पद धरूंगी।

मैं बसाऊंगी तुझे दिल में,
जला कर प्रेम-बाती।
कल्पना के पंख लेकर
अब पिया मैं क्या करूंगी?

आस में रो-रो गंवाई,
प्यास बढ़ती जा रही है।
जिंदगी प्रभु! सौंप पद पर,
वरण मैं तेरा करूंगी।

शून्य मंदिर में पिया!
प्रतिमा तुम्हारी मैं बनूंगी।
प्रेम के सिंदूर से प्रिय!
मांग अपनी मैं भरूंगी।

जीवन नृत्य बने, गीत बने, तुम्हारी हृदयतंत्री बजे, झनझनाए-तो ही तुम जानना कि सच्चे और सरल सनातन धर्म के रास्ते पर हो।


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