स्वधर्मे निधनम्‌ श्रेयः

Osho Hindi speech audio mp3 Download,Osho Audio mp3 free Download, Osho discourses in Hindi Download,Osho world AudioOsho Quotes in Hindi, Osho Quotes


स्वधर्मे निधनम्‌ श्रेयः अर्थात दूसरे के धर्म में मरना बहुत भयावह है,  यहां धर्म से अर्थ हिंदू, ईसाई, मुसलमान, जैन का नहीं है। यहां जो धर्म का फासला वे कर रहे हैं, वह ‘स्व’ और ‘पर’ का है। वह स्व कौन है, हिंदू है, मुसलमान है, ईसाई है, इससे कोई प्रयोजन नहीं है। यहां जो सवाल है वह ‘निजता’ और ‘परता’ का है। यहां वे यह कह रहे हैं कि तुम नकल में मत पड़ना, तुम किसी और के रास्ते पर मत चलने लगना। तुम किसी और को इमीटेट मत करने लगना, तुम किसी और का अनुकरण मत करने लगना। तुम किसी के अनुयायी मत हो जाना। तुम किसी को गुरु मत बना लेना। तुम अपने गुरु रहना। तुम अपनी निजता को किसी से आच्छादित मत हो जाने देना। तुम किसी के पीछे मत चल पड़ना। क्योंकि कोई कहीं जा रहा है, हो सकता है वह उसकी निजता हो और तुम्हारे लिए परतंत्रता बन जाए--और बनेगी ही। महावीर के लिए जो निजता है, वह किसी दूसरे के लिए निजता नहीं हो सकती। क्राइस्ट के लिए जो मार्ग है, वह किसी दूसरे के लिए मार्ग नहीं हो सकता। तो कृष्ण जब कहते हैं--स्वधर्मे निधनम्‌ श्रेयः, तो वे यह कहते हैं कि अपने ढंग से मर जाना भी श्रेयस्कर है, दूसरे के ढंग से जीना भी श्रेयस्कर नहीं। क्योंकि दूसरे के ढंग से जीने का मतलब ही जीए हुए मरना है। अपने ढंग से मरने का अर्थ भी नये जीवन को खोज लेना है। अगर मैं अपने ढंग से मर सकता हूं और मरने में भी निजता रख सकता हूं, तो मेरी मौत भी आथेंटिक हो जाएगी, प्रामाणिक हो जाएगी। मेरी मौत है। मैं मर रहा हूं।लेकिन हमने अपनी जिंदगी को भी उधार और बारोड कर लिया है, वह भी आथेंटिक नहीं है। तो कृष्ण कहते हैं, जीवन में तो प्रामाणिक होना। और प्रामाणिक होने का एक ही अर्थ है कि निजता को बचाना। चारों तरफ से हमले होंगे, चारों तरफ से लोग होंगे जो चाहेंगे कि आओ, मेरे पीछे आ जाओ। असल में अगर कोई और मेरे पीछे चले तो मेरे अहंकार को बड़ी तृप्ति मिलती है। अगर एक चले तो, दो चलें तो, दस चलें तो, लाख चलें तो बड़ी तृप्ति मिलती है। तब मुझे लगता है कि मैं कुछ ऐसा हूं जिसके पीछे चलना पड़ता है। मैं कुछ हूं। और जो भी मेरे पीछे चलेगा, उसे मैं गुलाम बनाना चाहूंगा। उसे मैं पूरी तरह गुलाम बनाना चाहूंगा। उस पर मैं अपनी आज्ञा, अपना अनुशासन पूरा थोप देना चाहूंगा। मैं उसकी स्वतंत्रता जरा सी भी बचने न देना चाहूंगा। क्योंकि उसकी स्वतंत्रता मेरे अहंकार को चुनौती होगी। तो मैं चाहूंगा वह मिट जाए। मैं ही उस पर आरोपित हो जाऊं। सभी गुरु यही करेंगे। और जब कृष्ण यह कह रहे हैं तब बहुत अदभुत बात कह रहे हैं, जो कि गुरु कहने की हिम्मत नहीं कर सकता, सिर्फ मित्र कर सकता है। धर्म से वहां प्रयोजन हिंदू, मुसलमान, ईसाई से नहीं है। धर्म से वहां प्रयोजन निजताओं से है। 

Comments

Popular Posts