जन्म
असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अंधेरे में ही हो सकती है। आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है वे सब गहरे अंधकार में, गहन अंधकार में होती हैं। एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत अचेतन अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है। एक चित्र का जन्म होता है, तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहां कोई रोशनी नहीं पहुंचती जगत की, वहां होता है। समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता है, तो सब गहन अंधकार में। गहन अंधकार से अर्थ है, जहां बुद्धि का प्रकाश जरा भी नहीं पहुंचता। जहां सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं सूझता है। कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन कब कोई चीज जन्मती है जो अंधकार में न जन्मती हो? इसमें विशेषता खोजने की जरूरत नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है। दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है--बंधन में जन्म होता है; कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएं। जरूरी नहीं है; हो सकता है हम मरें भी कारागृह में। जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में ही जन्म लेती है। लेकिन इस को ठीक से नहीं समझा गया। सभी जन्म कारागृह में होते हैं। सभी मृत्युएं कारागृह में नहीं होती हैं। कुछ मृत्युएं मुक्ति में होती हैं। कुछ; अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएं, टूट जाएं सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई। कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि जन्म के साथ ही उनके मरने का डर है। उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद--एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए। कृष्ण के जन्म के साथ ही मौत की धमकी है, मरने का भय है। सबके जन्म के साथ वही है। जन्म के बाद हम मरने के अतिरिक्त और करते ही क्या हैं? जन्म के बाद हम रोज-रोज मरते ही तो हैं। जिसे हम जीवन कहते हैं, वह मरने की लंबी यात्रा ही तो है। जन्म से शुरू होती है, मौत पर पूरी हो जाती है। लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने की बहुत तरह की घटनाएं आती हैं, लेकिन वे सबसे बच कर निकल जाते हैं। जो भी उन्हें मारने आता है वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। इसका भी बड़ा मतलब है। हमारे साथ ऐसा नहीं होता। मौत पहले ही हमले में हमें ले जाएगी। हम पहले हमले से ही न बच पाएंगे। क्योंकि सच तो यह है कि हम करीब-करीब मरे हुए लोग हैं, जरा सा धक्का और मर जाएंगे। जिंदगी का हमें कोई पता भी तो नहीं है। उस जीवन का हमें कोई पता नहीं जिसके दरवाजे पर मौत सदा हार जाती है।कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हार कर लौट जाती है। बहुत रूपों में। वे सब रूपों की कथाएं हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है। मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है, जिस-जिस ढंग से चाहा है कि कृष्ण मर जाएं, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और कृष्ण जीए ही चले जाते हैं। इसका मतलब है। इसका मतलब है, मौत पर जीवन की जीत।
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