एक छोटी सी घटना मुझे आती है याद। एडीसन एक गांव में गया हुआ था। और गांव के स्कूल में एक प्रदर्शनी भरी है और गांव के स्कूल के बच्चों ने बहुत से खेल-खिलौने बनाए हैं। एडीसन ने तो एक हजार आविष्कार किए। विज्ञान के इतने आविष्कार किसी दूसरे आदमी ने नहीं किए। और इलेक्ट्रिसिटी का तो वह सबसे बड़ा ज्ञाता था। तो उस गांव के स्कूल में गया है देखने। बूढ़ा आदमी--और जब ज्ञानी, बूढ़ा, सच में ज्ञानी होता है, तो बच्चों से भी, और बच्चे भी कुछ कर रहे हैं, इससे भी सीखने चला जाता है। सोचा कि पता नहीं बच्चों ने क्या किया है? वह गया। अब बच्चे क्या करते? कहीं नाव बनाई हुई है छोटी सी, बिजली से चलती है। मोटर बनाई है, ट्रेन बनाई है। वह पूछने लगा बच्चों से। उसे कोई जानता नहीं उस गांव में कि वह एडीसन है। वह बच्चों से पूछने लगा कि यह कैसे चल रही है?तो उन बच्चों ने कहा, इलेक्ट्रिसिटी से चल रही है। तो उसने पूछा, व्हाट इज़ इलेक्ट्रिसिटी? बिजली क्या है? तो उन बच्चों ने कहा कि यह तो हम न बता सकेंगे। हम तो सिर्फ बटन दबा कर इसको चला कर बता सकते हैं। लेकिन हमारा शिक्षक है, वह ग्रेजुएट है। हम उसको बुला लाते हैं, वह शायद आपको बता सके। वह शिक्षक बी.एससी. है, वह आ गया। उसको पूछा, यह बिजली क्या है?
तो उसने कहा, बिजली! बिजली एक प्रकार की शक्ति है।उसने कहा कि फिर भी वह शक्ति क्या है? तो उसने कहा, यह तो आप जरा कठिन सवाल पूछते हैं, यह मुझसे नहीं बन सकेगा। हमारा प्रिंसिपल डी.एससी. है, वह डाक्टर ऑफ साइंस है, उसको हम बुला लाते हैं।
वह डाक्टर ऑफ साइंस आ गया। उनको किसी को पता नहीं है कि सामने जो आदमी खड़ा है वह एडीसन है। वह पूछता है कि बिजली क्या है? तो वह जो डी.एससी. है, प्रिंसिपल, वह बताता है बिजली कैसे पैदा होती है।
तो वह कहता है, मैं यह नहीं पूछता कि कैसे पैदा होती है, मैं यह पूछ रहा हूं कि जो पैदा होती है वह क्या है?
तो वह डाक्टर बताता है, बिजली कैसे काम करती है। हाउ इट वर्क्स।
तो वह एडीसन कहता है, मैं यह नहीं पूछा कि वह कैसे काम करती है। मैं यह पूछता हूं, वह क्या है जो काम करती है?
उसने कहा, आप बड़े कठिन सवाल पूछ रहे हैं, इनका बड़ा मुश्किल है।
तो वह बूढ़ा एडीसन हंसने लगा, उसने कहा, घबड़ाओ मत, मैं एडीसन हूं और मैं भी नहीं जानता कि बिजली क्या है! मैं भी इतना ही बता सकता हूं--कैसे काम करती है, कैसे पैदा होती है। मैं भी नहीं जानता कि बिजली क्या है!
यह आदमी धार्मिक आदमी हो सकता है सच्चा सन्यासी हो सकता है। इसकी जिंदगी में रहस्य का द्वार खुला है। लेकिन हम? हम सब तरफ से रहस्य का द्वार बंद कर लेते हैं। सब चीजें, ऐसा लगता है, हमें मालूम हैं। जिस आदमी को ऐसा लगता है सब मालूम है, वह क्लोज्ड हो गया, बंद हो गया। उसके दरवाजे, द्वार, खिड़कियां, सब बंद हो गए।
लेकिन आदमी बड़ा होशियार है, वह अपने लिए भी मकान बनाता है, परमात्मा के लिए भी मकान बना देता है। कहता है, हम इधर रहेंगे, तुम इधर रहो। कभी भी जरूरत होगी, आ जाएंगे, मिल लेंगे, दो बात कर लेंगे, ताला डाल कर वापस चले जाएंगे कि कहीं भाग भी न जाओ। एक नौकर रख देंगे, एक पुजारी बिठा देंगे, वह तुम्हारी पूजा भी कर देगा, अगर हमें फुर्सत न मिली तो वह फूल चढ़ा देगा।
धर्म को हमने फॉर्मल, औपचारिक बनाया हुआ है।
परमात्मा सब तरफ मौजूद है। ऐसा नहीं कह रहा हूं कि मंदिर में मौजूद नहीं है। लेकिन जिसे सब जगह दिखाई पड़ेगा, उसे मंदिर में भी दिखाई पड़ सकता है। लेकिन जिसे सिर्फ मंदिर में होने का खयाल है, उसे कहीं भी दिखाई नहीं पड़ सकता। वह असंभव है। वह असंभव है।
जिंदगी चारों तरफ से उसकी खबर दे रही है। उत्सुकता चाहिए, रहस्य का भाव चाहिए, आश्चर्य का बोध चाहिए। रुक कर ठहर कर देखने की क्षमता चाहिए। एक परसेप्शन चाहिए, एक दृष्टि चाहिए।
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