प्रकृतिगत प्रयोगशाला

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‘विनाशाय च दुष्कृताम्‌’ 

इस प्रकृति की प्रयोगशाला रूपी महाभारत में हमें जो कृष्ण के हाथो वध दिखाई पड़ता है, कृष्ण के लिए वह वध नहीं है। जो भी गीता को समझते हैं, समझ सकेंगे। हमें जो वध मालूम पड़ता है, वह कृष्ण के लिए वध नहीं है,। कृष्ण की तरफ से न कोई मारा जाता है, न कोई मारा जा सकता है। फिर कृष्ण क्या कर रहे हैं? लेकिन हमें तो दिखाई पड़ता है कि उन्होंने किसी राक्षस को, किसी पूतना को, किसी को मार डाला। इसको समझने के लिए थोड़े गहरे जाना पड़ेगा और समझ के बाहर के कुछ सूत्र भी खयाल में लेने पड़ेंगे। अगर इसे ठीक से धर्म के पूरे विज्ञान की भाषा में समझें, तो इसका मतलब केवल इतना हुआ कि एक विशेष राक्षस या एक विशेष दुष्ट के संस्थान को नष्ट कर दिया। एक विशेष दुष्ट के संस्कारों के जाल को, शरीर को, चित्त को पूरी तरह नष्ट कर दिया। और उसके भीतर की आत्मा को, उसकी पुरानी आदतों के जाल और संस्कारों से मुक्त कर दिया। धर्म के अर्थों में इतना ही होगा। और अगर कृष्ण को ऐसा दिखाई पड़ता है कि यह आदमी इस शरीर के साथ रूपांतरित नहीं हो सकता, तो इसके लिए नये शरीर की यात्रा पर भेज देना सहयोगी होता है। अगर यह शरीर उतनी जड़ता को उपलब्ध हो गया है कि अब इसमें परिवर्तन असंभव है, इसे नया शरीर मिल जाए तो आसान होगा। 

जैसे एक बूढ़े आदमी को अगर स्कूल भेजना हो, एक सत्तर साल के आदमी को अगर प्राइमरी स्कूल में भर्ती कराना हो, तो जिस दिन विज्ञान के पास सुविधा हो जाएगी, हम भी वही करेंगे जो कृष्ण ने किया। विज्ञान के पास धीरे-धीरे सुविधा होती जा रही है। तब हम इस बूढ़े आदमी को प्रौढ़-शिक्षा में भर्ती न करेंगे। बल्कि इस बूढ़े आदमी को नये बच्चे का शरीर देना चाहेंगे। क्योंकि प्रौढ़ को शिक्षित करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वह इतना शिक्षित हो चुका होता है, उसकी स्लेट पर इतना लिखा जा चुका होता है कि अब उस पर नये अक्षर की रेखाएं खींचनी बड़ी कठिन हो जाती हैं, और खिंच भी जाएं तो दिखाई भी नहीं पड़तीं। और आदतों का जाल इतना घना हो जाता है कि उन आदतों के जाल से छूटना मुश्किल हो जाता है। समझ में भी आ जाए तो भी आदतों का जाल पीछा करता है। खयाल में भी आ जाए तो भी आदतों का जाल पीछा करता है।

इसलिए यह बड़े मजे की बात है कि रावण राम के हाथों से मर कर धन्यवाद दे पाता है। कृष्ण के हाथों से जो मरे हैं, वे भी धन्यवाद दे पाते हैं। बहुत गहरी अंतरात्मा में उनके धन्यवाद उठता है। एक जाल टूटा। एक जाल नष्ट हुआ। और एक नई यात्रा क ख ग से शुरू हो सकती है। लेकिन हमें तो यही दिखाई पड़ेगा कि मार डाला उस आदमी को। अगर मेरी तरफ से समझें तो मैं कहूंगा, नई जिंदगी दी उस आदमी को। नई शुरुआत दी उस आदमी को। उसकी यात्रा को फिर क ख ग से शुरू किया। सफेद, क्लीन स्लेट दी, साफ-सुथरी उसे स्लेट दे दी। 

कृष्ण के हिसाब में, या मेरे हिसाब में, कोई मरता नहीं। मरने का कोई उपाय नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप हिंसा करने निकल जाएं और किसी को भी मारने लगें। हां, उस दिन आपको मारने की आज्ञा दी जा सकती है जिस दिन आपको यह पता चल जाए कि कोई मरता नहीं। लेकिन ध्यान रहे उस दिन मरने की भी खुद की तैयारी इतनी ही होनी चाहिए, तभी पता चला समझा जाएगा। तो कृष्ण वह तैयारी पूरी दिखाते हैं। मौत के मुंह में वे जगह-जगह उतर जाते हैं। वही कसौटी है। छोटा सा बच्चा है, भयंकर सर्प से जूझ जाता है। छोटा सा बच्चा है, महाशक्तिशाली राक्षसों से उलझ जाता है। क्या, खबर क्या दे रहा है वह? वह खबर केवल इतनी दे रहा है कि मरता कोई नहीं। मौत एकमात्र असत्य है। द ओनली इल्युजन। एकमात्र भ्रम है। एकमात्र माया है, जो है नहीं और दिखाई पड़ती है। मृत्यु यदि असत्य है, तो फिर हम शरीर को बदलने की भी जरूरत अनुभव कर सकते हैं।

ऐसा समझें। आपकी एक किडनी खराब हो गई है और डाक्टर उसे अलग करके दूसरी किडनी लगा देता है। तो हमें कोई तकलीफ नहीं होती। लेकिन एक अर्थ में आपका शरीर बदल दिया गया। आपका हृदय खराब हो गया है और आपको दूसरा हृदय प्लास्टिक का लगा दिया जाता है। एक अर्थ में आपका शरीर बदल दिया गया। अभी हम पार्टस्‌ में बदल पा रहे हैं, लेकिन आज नहीं कल, हम पूरे शरीर को बदल पाएंगे, इसमें कठिनाई नहीं है। अभी तक प्रकृति शरीर को बदलती थी, कृष्ण के जमाने तक में विज्ञान इतना विकसित न था कि वे वैज्ञानिक को कहते कि इस राक्षस के शरीर को बदल दो। प्रकृति को ही सौंपना पड़ता, गर्दन काट कर प्रकृति को सौंप देते कि बदलो, इसलिए मैं नहीं मानता हूं कि दुष्टों को नष्ट किया; मैं मानता हूं, दुष्टों को रूपांतरित किया। सिर्फ रूपांतरण की यात्रा पर वे भेज दिए गए हैं। वे प्रकृति की प्रयोगशाला में वापस लौटा दिए गए हैं। प्रकृति की वर्कशाप में वापस भेज दिए गए हैं कि कृपा करके इनको फिर से शरीर दो, फिर से आंखें दो, फिर से मन दो, ताकि इनकी फिर से नई यात्रा शुरू हो सके। 

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