जीवन मृत्यु
जिन्होंने मृत्यु को यम कहा, बड़े अदभुत लोग थे। यम का अर्थ होता है, नियमन करने वाला, दि कंट्रोलर। बड़े मजेदार लोग थे। मृत्यु को जीवन का नियमन करने वाला कहा है। अगर मृत्यु जीवन का नियमन न करे तो बड़ी अव्यवस्था हो जाए, अराजकता हो जाए। मृत्यु आकर सब उपद्रव को शांत करती चली जाती है। मृत्यु विश्राम है। जैसे दिनभर के श्रम के बाद रात आ जाती है और रात की गोद में आदमी सो जाता है विश्राम में। कभी आपने खयाल किया, दस-पांच दिन नींद न आए तो बड़ा अनियमन हो जाएगा। चित्त बड़ा भ्रांत हो जाएगा। उद्विग्न हो जाएगा। अराजक हो जाएगा। दस दिन नींद न आए तो आप विक्षिप्त हो जाएंगे। रात आकर आपकी विक्षिप्तता को बचा जाती है। रात आकर व्यवस्था दे जाती है, सुबह आप फिर ताजे होकर जागकर खड़े हो जाते हैं। गहरे अर्थों में, विस्तीर्ण अर्थों में, पूरे जीवन के उपद्रव के बाद, पूरे जीवन की दौड़-धूप के बाद मृत्यु रात का विश्राम है। वह फिर नियमन दे देती है। वह फिर जीवन के सब शूल, जीवन की सब चिंताएं, जीवन के सब उपद्रव, जीवन के सब भार छीन लेती है। फिर नई सुबह, फिर नया जीवन! इसलिए मृत्यु के देवता को कहा है यम। वह जीवन को नियमित करता रहता है। वह न हो तो जीवन विक्षिप्त हो जाए। मृत्यु जीवन की शत्रु नहीं है। यम का अर्थ हुआ कि मृत्यु जीवन की मित्र है। और जीवन पागल हो जाए, अगर मृत्यु न हो तो। जीवन विक्षिप्त हो जाए, अगर मृत्यु न हो तो।इसे अगर और आयामों में भी फैलाकर देखेंगे तो बहुत हैरान हो जाएंगे। क्योंकि इसमें बड़े अर्थों के फूल खिल सकते हैं। अगर सुख मिल जाए इतना कि दुख कभी न मिले, तो भी आदमी पागल हो जाए। यह बात अजीब लगेगी। यह बात समझ में नहीं पड़ेगी। लेकिन सुख अगर मिल जाए अमिश्रित, जिसमें दुख बिलकुल न हो, तो सुख विक्षिप्त कर जाएगा।
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