नेह
प्रेम की तीन सीढ़ियां हैं: काम, प्रेम, भक्ति।
काम सबसे नीची घटना है। आमतौर से जिसको तुम प्रेम कहते हो, वह कामवासना ही होती है। उसके रहस्य तुम्हारे शरीर के भीतर छिपे होते हैं। उसके रहस्य तुम्हारी कामवासना की वृत्ति में दबे होते हैं। उसके रहस्य तुम्हारे हारमोन और तुम्हारा रसायन-शास्त्र। उसका रहस्य तुम्हारा अचेतन चित्त है। कामवासना को ही लोग प्रेम कहते हैं। सबसे निम्नतम ऊर्जा तुम्हारी जो है, जीवन की सीढ़ी का जो पहला सोपान है, उसका भी तुम उत्तर नहीं दे पाते। वह भी बेबूझ मालूम होती है बात। प्रेम काम के बाद की सीढ़ी है। प्रेम और अड़चन की बात है; और सूक्ष्म हो गई। ऐसा समझो कि काम घटता है तुम्हारे शारीरिक रसायन में, तुम्हारे शरीर की भौतिक प्रक्रिया में, प्रेम घटता है तुम्हारे हृदय की गहराइयों में। प्रेम मानसिक है, काम शारीरिक है, भक्ति आध्यात्मिक है।
कहे वाजिद पुकार... साधां सेती नेह लगे तो लाइए।
वह तो तुम्हारे शरीर, मन दोनों के पार है। वह तो तुम्हारी ऊंची से ऊंची सीढ़ी है। वह तो तुम्हारी ऊंची से ऊंची उड़ान है। उस भक्ति को ही नेह कह रहे हैं। इसलिए प्रेम नहीं कहा, नेह कहा। प्रेम से तुम्हें शायद भूल हो जाए। शायद तुम प्रेम से सामान्य प्रेम की बातें समझ लो। इसलिए वाजिद ने उसे नेह कहा। यह तो सबसे ऊंची घटना है। और जितनी ऊंची होती जाती है बात, उतनी ही मुश्किल होती जाती है, उतनी बेबूझ होती जाती है, उतनी रहस्यपूर्ण होती जाती है। तुम लुटे-से रह जाते हो! अवाक, श्वासें बंद, विचार बंद! तर्क तो कब के बहुत पीछे छूट गए, जैसे उड़ती धूल कारवां के पीछे छूट जाती है। कारवां तो कितना आगे बढ़ गया! और तुम पर प्रसाद की वर्षा हुई। परमात्मा उतरा है और तुम्हारे प्राणों को आंदोलित कर गया है। परमात्मा आया है और उसने तुम्हारे हृदयतंत्री के तार छेड़ दिए हैं। परमात्मा आया और तुम्हारी बांसुरी में एक फूंक मार गया, एक टेर मार गया है! उसी टेर का नाम नेह है। उसी टेर का नाम भक्ति है, प्रार्थना है।
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