यथार्थ
कुछ ऐसी हमारी किस्मत हो, पीता भी रहूं और प्यास भी हो
मस्ती में बहकता दिल भी रहे और होश भरा उल्लास भी हो
जीवन का सफर यों बीते अगर, कुछ धूप भी हो, कुछ छांव भी हो
मिलता भी रहे चलने का मजा, मंजिल का सदा अहसास भी हो
पर्दे में छुपा हो लाख मगर, जलवा भी दिखाई देता रहे
इस आंख-मिचौनी खेल में वो, कुछ दूर भी हो, कुछ पास भी हो
कुछ इश्के-खुदा में चुप भी रहूं, कुछ इश्के-बुतां में बात भी हो
धरती भी बसी आंखों में रहे, प्यारा ये खुला आकाश भी हो
हो चुप्पी मगर कुछ गाती हुई, संगीत हो मौन में डूबा हुआ
रोदन भी चले कुछ मुस्काता, कुछ अश्रु बहाता हास भी हो
सन्नाटा कभी तूफान सा हो, चुपचाप सी गुजरे आंधी कभी
मझधार भी हो साहिल की तरह, पतवार भी हो, श्रद्धा से भरा विश्वास भी हो
मुमकिन हो अगर यह दुनिया में, जीने का मजा कुछ और ही हो
मौला भी रहे, बंदा भी रहे, गीता भी झरे और व्यास भी हो
मिट जाएं मेरी हस्ती के निशां, मौजूद भी लेकिन पूरा रहूं
मैं उसका नजारा देखा करूं, संन्यास भी हो, संसार भी हो
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