हकारात्मक पागलपन

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दो तरह के पागलपन हैं जमीन पर। एक जो परमात्मा की दिशा में जाता है, जहां हम अपने को खोकर सब पा लेते हैं। और एक जो अपने अहंकार की दिशा में जाता है, जहां हमें कुछ भी मिल जाए तो कुछ मिलता नहीं, अंततः हम खाली के खाली रह जाते हैं। तो अगर अहंकार के लिए ही पागल होना हो, तब तो हम सब पागल हैं। हम सब अहंकार के लिए पागल हैं। एक छोटे से मैं के लिए हम जिंदगी भर लगा देते हैं कि यह मैं कैसे मजबूत हो! यह मैं कैसे बड़ा हो! यह मैं कैसे लोगों को दिखाई पड़े! चुभे!लेकिन वह पागलपन हमें दिखाई नहीं पड़ता; क्योंकि हम सभी उसमें सहमत और साथी हैं। वह नार्मल मैडनेस है, वह सामान्य पागलपन है जिसमें हम सब भागीदार हैं। और अगर एक गांव में सारे लोग पागल हो जाएं, तो फिर उस गांव में पता नहीं चलेगा कि कोई पागल हो गया है। बल्कि उस गांव में खतरा है कि किसी आदमी का अगर दिमाग ठीक हो जाए, तो सारा गांव विचार करने लगेगा कि मालूम होता है यह आदमी पागल तो नहीं हो गया! अगर पूरा गांव पागल हो तो बड़ी मुश्किल हो जाती है।

इस जमीन पर ऐसा ही हुआ है। हम सब अहंकार के लिए पागल हैं। इसलिए जब कोई परमात्मा की दिशा में पागल होता है, तो हमें लगता है कि यह पागल हो गया। सच्चाई उलटी है। हम सब पागल हैं; परमात्मा की दिशा पर जाने वाले लोग ही बस पागल नहीं हैं। लेकिन हमें ये पागल दिखाई पड़ने शुरू होते हैं। हमसे अनजान, अपरिचित लोक में जो जाता है, हमसे भिन्न, हमसे अज्ञात रास्तों पर जो कदम रखता है, वह हमें पागल मालूम होने लगता है। इसलिए बुद्ध भी पागल मालूम होते हैं, महावीर भी, नानक भी, कबीर भी, क्राइस्ट भी, सब पागल मालूम होते हैं। उस जमाने के लोगों को लगता है कि यह आदमी पागल हो गया। स्वाभाविक है, सदा से यह हुआ है। दुर्भाग्य है, लेकिन यही हुआ है कि जो सच में स्वस्थ हो जाते हैं, वे इन बीमारों के बीच अस्वस्थ मालूम पड़ने लगते हैं। उसमें हिम्मत जुटाने की जरूरत है, उसके रास्ते पर पागल होने से डरने की जरूरत नहीं। जीसस का वचन है, जो कीमती है। जीसस ने कहा, जो अपने को बचाएगा वह मिट जाएगा। और धन्य हैं वे जो अपने को मिटा देते हैं, क्योंकि फिर उनका मिटना असंभव है, फिर वे बचा लिए जाते हैं। उलटे हैं इस दुनिया के रास्ते, परमात्मा के रास्ते बिलकुल उलटे हैं। वहां वही बचता है जो खोने को राजी है, यहां वही बचता है जो खोने से अपने को बचाता रहता है। लेकिन हमारा बचा हुआ भी खो जाता है, और उसमें खोया हुआ भी बच जाता है। खोने से मत डरना, मिटने से मत डरना, अन्यथा उसकी सीढ़ियों से वापस लौटना हो जाता है।

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