निर्मलता
संन्यास जीवन की कला है निर्मल, जीवन का त्याग नहीं।
तुम बहते जाना, बहते जाना, बहते जाना भाई!
तुम शीश उठा कर सरदी-गरमी सहते जाना भाई!
सब यहां कह रहे हैं रो-रो कर अपने दुख की बातें!
तुम हंस कर सब के सुख की बातें कहते जाना भाई!
भ्रम रहे यहां पर हैं बेसुध-से सूरज, चांद, सितारे,
गल रही बरफ, चल रही हवा, जल रहे यहां अंगारे,
है आना-जाना सत्य, और सब झूठ यहां पर भाई,
कब रुकने पाए झुकने वाले जीवन पर बेचारे?
तुम किस पर खुश हो गए और तुम बोलो किस पर रूठे?
जो कल वाले थे स्वप्न सुनहले आज पड़ चुके झूठे!
है यह कांटों की राह विवश-सा सबको चलते रहना,
जो स्वयं प्रगति बन जाए उसी के स्वप्न अपूर्व अनूठे!
तुम जो देते हो मानवता को आठों याम चुनौती,
तुम महल खजानों को जो अपनी समझे हुए बपौती!
तुम कल बन कर रजकण पैरों से ठुकराए जाओगे!
है कौन यहां पर ऐसा जो खा कर आया हो अमरौती?
यह रंग-बिरंगी उषा लिए है दुख की काली रातें,
हैं ग्रीष्म-काल की दाहक लपटों में रस की बरसातें!
यह बनना-मिटना अमिट काल के चल-चरणों का क्रम है,
छाया के चित्रों सदृश यहां हैं ये सुख-दुख की बातें!
रुकना है गति का नियम नहीं, तुम चलते जाना भाई,
बुझना प्राणों का नियम नहीं, तुम जलते जाना भाई!
हिम-खंड सदृश तुम निर्मल, शीतल, उज्ज्वल यश के भागी,
जमना आंसू का नियम नहीं, तुम गलते जाना भाई!
हर मनुष्य के भीतर अनगढ़ हीरा है। जो शाश्वत है। अभी क्रोध की पर्त है, कामवासना की पर्त है, लोभ है, मोह है, न मालूम क्या-क्या जुड़ा है! इस सबको छांटना है, काटना है। मगर इस सबको काटने-छांटने के लिए दुश्मनी से नहीं चलेगा, बड़ा प्रीतिपूर्ण व्यवहार चाहिए, क्योंकि सिवाय प्रेम के कोई अपने को समझ नहीं पाता। अपने से प्रेम करो। अपने को समझने की कोशिश करो। तुम्हें इतनी ऊर्जा मिली है कि काश! तुम इस ऊर्जा के साथ मैत्री साध लो तो यही ऊर्जा सोपान बन जाएगी परमात्मा तक पहुंचाने का। अगर इससे दुश्मनी कर ली तो बस इसी में लड़-झगड़ कर मर जाओगे, नष्ट हो जाओगे। तो मनुष्य की ये जो ऊर्जा हैं क्रोध की, काम की, लोभ की। इनसे डरने की जरूरत नहीं है। इनसे कंपने की जरूरत नहीं है। इनके साथ भी उतना ही वैज्ञानिक व्यवहार किया जा सकता है। और यह भी अगर हम वैज्ञानिक रूप से समझ लें तो ये भी हमारे भीतर रोशनी बन सकते हैं। इनसे भीतर का दीया जलेगा। इनसे भीतर शीतलता आएगी। इनसे भीतर के जीवन में झरने फूटेंगे। यही जीवंत और धार्मिक जीवन बनेगा।
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