हार जीत
इस जगत में, जो जीतना नहीं चाहता, वह जीत जाता है और जो जीतना चाहता है, वह हार जाता है। असल में जीतने की चाह में ही बहुत गहरे में हार छिपी है। और जो जीतना नहीं चाहता, इस भाव में ही वह जीता ही हुआ है यह भाव छिपा है। इसे ऐसा समझें अगर कि जो आदमी जीतना चाहता है, वह गहरे में इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स से पीड़ित है, वह हीनभाव से पीड़ित है। वह जानता तो है कि हीन है, जीत कर सिद्ध करना चाहता है कि हीन नहीं है। जो आदमी जीतने के लिए आतुर ही नहीं है, वह अपनी श्रेष्ठता में प्रतिष्ठित है।बस अपना निष्काम कर्म किए जा रहा है उसे कहीं कोई हीनता ही नहीं है जिसे असिद्ध करने के लिए जीत अनिवार्य हो। इसे अगर हम ‘ताओ’ से समझेंगे तो बहुत आसानी हो जाएगी।लाओत्से ने एक दिन अपने मित्रों को कहा है कि मुझे जिंदगी में कोई हरा नहीं सका। तो एक व्यक्ति ने उससे खड़े होकर पूछा कि वह राज हमें भी बताओ, वह सीक्रेट, क्योंकि जीतना तो हम भी चाहते हैं और हम भी चाहते हैं कि कोई हमें हरा न सके। लाओत्से हंसने लगा, उसने कहा कि फिर तुम न समझ सकोगे उस राज को। क्योंकि तुमने पूरी बात भी न सुनी और बीच में ही पूछ बैठे। मैंने कहा था, मुझे जिंदगी में कोई हरा न सका...पूरा वाक्य तो कर लेने दो। लाओत्से ने पूरा वाक्य किया, उसने कहा, मुझे जिंदगी में कोई हरा न सका, क्योंकि मैं हारा ही हुआ था। मैं पहले से ही हारा हुआ था। मुझे जीतना मुश्किल था, क्योंकि मैंने जीतना ही नहीं चाहा था। तो उसने उन लोगों से कहा कि तुम अगर सोचते हो कि तुम मेरे राज को समझ जाओगे, तो गलती में हो। तुम जीतने की आकांक्षा करते हो, वही तुम्हारी हार बन जाएगी। सफलता की आकांक्षा ही अंत में असफलता बनती है, और जीवन की अति आकांक्षा ही अंत में मृत्यु बन जाती है, स्वस्थ होने का पागलपन ही बीमारी में ले जाता है। जिंदगी बहुत अदभुत है।
Comments
Post a Comment