सूक्ष्म स्पंदन
दो साधु एक दिन सांझ को अपने झोपड़े पर वापस लौटे। वर्षा के दिन आने को थे, आकाश में बादल घिर गए थे, जोर के तूफान उठे हुए थे, हवाएं जोर से बह रही थीं और बादलों के आगमन की प्रतीक्षा थी। वर्षा के दिन आने को थे। वे दोनों सांझ को अपने झोपड़े पर लौटे--गांव के बाहर नदी के पास।पहला साधु जैसे ही अपने झोपड़े को देखा, हैरान हो गया। हवाओं ने आधे झोपड़े को उड़ा दिया था! आधे झोपड़े का छप्पर टूटा हुआ गिरा हुआ था, दूर पड़ा था। गरीब का झोपड़ा था, कोई बड़ी ताकत का झोपड़ा नहीं था। लकड़ी और बांस से बना हुआ था, आधा झोपड़ा उड़ गया था। वह फकीर बोला, इन्हीं बातों से तो परमात्मा पर शक आ जाता है। इतना बड़ा गांव है, इतने बड़े मकान हैं, उनमें से तो किसी का मकान नहीं टूटा है। इस गरीब, साधुओं के मकान को भगवान ने तोड़ दिया! इसी से शक पैदा हो जाता है कि भगवान है भी या नहीं! पापियों के बड़े मकान खड़े हो जाते हैं और हम जो निरंतर प्रार्थना में समय बिता रहे हैं, उनका आधा झोपड़ा खराब हो गया। अब वर्षा में क्या होगा? वह यह कह ही रहा था, अपने मन में सोच ही रहा था कि पीछे से दूसरा फकीर भी, जो उसके साथ ही रहता था, वह भी आया। उसके आते ही उसने कहा कि देखते हो हमारी सारी प्रार्थनाओं का फल! हमारे सारे उपवास, हमारी सारी पूजा यह फल लाई है कि वर्षा सिर पर खड़ी है, झोपड़े का छप्पर उड़ गया! अब क्या होगा? इस वर्षा में कैसे दिन व्यतीत होंगे? लेकिन वह दूसरा फकीर झोपड़े को देखते ही जैसे किसी आनंद से भर गया और नाचने लगा, जैसे पागल हो गया हो। और उसने एक गीत गाया और उसने कहा कि परमात्मा तेरा धन्यवाद है! आंधियों का क्या भरोसा, पूरे झोपड़े को भी उड़ा कर ले जा सकती थीं। जरूर तूने ही बाधा दी होगी और आधे झोपड़े को बचाया। आंधियों का क्या भरोसा! आंधियां क्या देखती हैं कि किसका झोपड़ा है--गरीब फकीरों का! पूरा ही उड़ा ले जातीं। जरूर तूने ही बाधा दी होगी, जरूर तूने ही रोका होगा, तब तो आधा रुक गया। और आधा तो काफी है, आधा तो बहुत है। वह झोपड़े के भीतर गया और रात उसने एक गीत लिखा और उस गीत में उसने लिखा कि हमें तो पता ही नहीं था कि आधे छप्पर में इतना आनंद हो सकता है, नहीं तो हम खुद ही पहले आधा अलग कर देते। आज रात को सोए, आधे में सोए भी रहे और जब भी आंख खुली तो आधे खुले हुए छप्पर से आकाश में चमकते हुए तारे और चांद को भी देखते रहे। अब वर्षा आएगी, आधे में सोएंगे भी, आधे में वर्षा का गीत भी होता रहेगा, वर्षा की बूंदें भी टपकती रहेंगी। हमें पता होता काश तो हम खुद ही आधा अलग कर देते। भगवान, तूने वक्त पर ठीक किया। उस रात वे दोनों उस झोपड़े में सोए। पहला फकीर बहुत दुखी सोया, बहुत परेशान सोया, रात नींद नहीं ले सका; क्योंकि शिकायत उसके मन में आ गई थी और जो हुआ था उससे वह दुखी हो गया था। वह रात भर अशांत था। दूसरा फकीर बहुत गहरी नींद में सोया, उसके मन में परमात्मा के लिए धन्यवाद था, ग्रेटिट्यूड था, कृतज्ञता थी, उसने बचाया था। वह सुबह आनंदित उठा।
घटना एक ही थी, देखने वाले आदमी दो थे। परिस्थिति एक ही थी, देखने की दृष्टियां दो थीं। कौन सी दृष्टि आपकी है, इस पर विचार करना। अगर पहले वाले साधु की दृष्टि है तो चित्त अशांत होगा। अगर दूसरे वाले साधु की दृष्टि है तो जीवन में बहुत आनंद है, बहुत-बहुत आनंद है। जीवन में बहुत कृतज्ञ होने जैसा है। यह विचार करना कि आपकी दृष्टि कौन सी है? अगर पहले वाले साधु की दृष्टि हो तो इस जीवन में आपको नरक के सिवाय और कुछ भी उपलब्ध नहीं हो सकता। और उसका दोष जीवन को मत देना कि जीवन बुरा था। स्मरण रखना कि उसकी सारी की सारी बात जीवन के बुरे होने की न थी, वह दृष्टि के गलत होने की थी। और अगर आपकी दृष्टि दूसरे साधु की हो, तो इस जीवन में बहुत है, इस जीवन के पत्ते-पत्ते में संगीत है और कण-कण में एक अदभुत रहस्य है। लेकिन अगर दृष्टि हो तो वह दिखाई पड़ना शुरू होता है। छोटे-छोटे प्रेम में बहुत प्रार्थनाएं हैं, छोटे-छोटे जीवन के संबंधों में बहुत आनंद है। लेकिन केवल उनको दिखाई पड़ेगा जो देखने में समर्थ होते हैं।
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